जब तुम गाँव से विदा हुयी होगी,
मैं नहीं जानता
तुम्हारी स्थिति क्या रही होगी?
उस वक्त तुम्हारी आँखों से
जो आँसू गिरे होंगे
कौन बता सकता है कि वो
परिवार से दूर जाने के आँसू थे या
मुझसे हमेशा के लिए बिछड़ने के।
मैं नहीं जानता कि मुझसे बिछड़कर
तुम पर क्या गुज़री होगी?
मगर, मैं जानता हूँ कि
तुमसे बिछड़ने के बाद मुझ पर क्या बीती?
मैं ये भी जानता हूँ
कि अगर तुम्हें कभी चोरी छिपे
मुझे पत्र लिखने का मौका मिला
तो तुम लिखोगी- "मुझे भूल जाओ"
जानता हूँ कि तुम्हें भुलाना पड़ेगा
और, किसी ना किसी के साथ
बंधन में बंधना भी पड़ेगा।
पता नहीं वो
किस से बिछड़कर पहुँचेगी मुझ तक
जैसे तुम मुझसे बिछड़कर पहुँची हो किसी तक।
दुख इस बात का नहीं कि
दुनियाँ वालों ने हमें मिलने नहीं दिया
अफसोस तो ये है
कि मज़ारों पर चढ़ायी गयी चादरेँ
और पीपल पर बाँधे गये धागे भी हमें
जुदा होने से बचा नहीँ सके.....!
6 टिप्पणियाँ
दुख इस बात का नहीं कि
जवाब देंहटाएंदुनियाँ वालों ने हमें मिलने नहीं दिया
अफसोस तो ये है
कि मज़ारों पर चढ़ायी गयी चादरेँ
और पीपल पर बाँधे गये धागे भी हमें
जुदा होने से बचा नहीँ सके.....!
खूब कही है सिराज भाई। दिल को छू लिया। सुभानअल्लाह।
बडा ही कोमल ख़याल।
जवाब देंहटाएंकईयों की दास्तान.......दर्द भरी...
जवाब देंहटाएंपता नहीं वो
जवाब देंहटाएंकिस से बिछड़कर पहुँचेगी मुझ तक
जैसे तुम मुझसे बिछड़कर पहुँची हो किसी तक।
dahre bhav
दुख इस बात का नहीं कि
दुनियाँ वालों ने हमें मिलने नहीं दिया
अफसोस तो ये है
कि मज़ारों पर चढ़ायी गयी चादरेँ
और पीपल पर बाँधे गये धागे भी हमें
जुदा होने से बचा नहीँ सके.....!
sunder likha hai bahut hi prabhavi kavita
rachana
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंअंतरात्मा को छु गयी .......इस रचना की एक एक पंक्तियाँ .........लाजवाब
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.