ये कैसी उलझन है
जिसमें उलझती जाती हूँ
जितना सुलझाने की
कोशिश करुँ
फिर भी उलझती जाती हूँ
कभी ख़ुद को चाहने लगती हूँ
कभी किसी की चाहत लगती हूँ
पर फिर भी किसी की यादों के
दायरों में सिमटती जाती हूँ
कभी उसकी यादों में होती हूँ
कभी उसको याद करती हूँ
ये यादों के भंवर में
क्यूँ रोज उलझती जाती हूँ
कभी दिल की वादी में मिलती हूँ
कभी दिल के कँवल खिलाती हूँ
फिर इक-इक फूल को
किताबों में सहेजे जाती हूँ
कभी उससे बातें करती हूँ
कभी उसकी बातें सुनती हूँ
इस सुनने सुनाने की महफिल में
क्यूँ उसके दीदार को तरसती हूँ
हाय!ये कैसी उलझन है
जिसमें उलझती जाती हूँ
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जिसमें उलझती जाती हूँ
जितना सुलझाने की
कोशिश करुँ
फिर भी उलझती जाती हूँ
कभी ख़ुद को चाहने लगती हूँ
कभी किसी की चाहत लगती हूँ
पर फिर भी किसी की यादों के
दायरों में सिमटती जाती हूँ
कभी उसकी यादों में होती हूँ
कभी उसको याद करती हूँ
ये यादों के भंवर में
क्यूँ रोज उलझती जाती हूँ
कभी दिल की वादी में मिलती हूँ
कभी दिल के कँवल खिलाती हूँ
फिर इक-इक फूल को
किताबों में सहेजे जाती हूँ
कभी उससे बातें करती हूँ
कभी उसकी बातें सुनती हूँ
इस सुनने सुनाने की महफिल में
क्यूँ उसके दीदार को तरसती हूँ
हाय!ये कैसी उलझन है
जिसमें उलझती जाती हूँ
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4 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंkabhi kabhi aesa ho jata hai
जवाब देंहटाएंachchhi abhivyakti
rachana
Sahaj bhaavon se sajee kavita man ko chhootee
जवाब देंहटाएंhai.
uljhn suljhi khan aaj tk
जवाब देंहटाएंye to ek pheli hai
jis ne uljhn ko suljhya
us ki rah akeli hai
bahut 2 bdhai
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.