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आजादी के बाद पत्रकारो ने अपनी कलम को स्वंम बिकाऊ किया [आलेख]- संतोष गंगेले


आधुनिक तकनीक ने समाचार-पत्रों तथा दूसरे संचार माध्यमों की क्षमता बढ़ा दी है, लेकिन क्या वास्तव में पत्रकारों की कलम ऐसा कुछ लिखने के लिए स्वतंत्र है, जिससे समाज और देश का भला हो? आज जब हम समाचार-पत्र की आजादी की बात कहते हैं, तो उसे पत्रकारों की आजादी कहना एक भयंकर भूल होगी। आधुनिक तकनीक ने पत्रकार के साथ यही किया है, जो हर प्रकार के श्रमिक-उत्पादकों के साथ किया है। वर्तमान में पत्रकार, स्वतंत्र अखबारों के गुलाम बनकर रह गए हैं। दरअसल, 3 मई को प्रेस की आजादी को अक्षुण्ण रखने के लिए विश्व प्रेस स्वाधीनता दिवस मनाया जाता है। हम विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस ऐसे समय मना रहे हैं, जब दुनिया के कई हिस्सों में समाचार लिखने की कीमत पत्रकारों को जान देकर चुकानी पड़ रही है। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस याद दिलाता है कि हरेक राष्ट्र और समाज को अपनी अन्य स्वतंत्रताओं की तरह प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए भी हमेशा सतर्क और जागरूक रहना होता है। एक स्वस्थ लोकतंत्र में स्वतंत्र प्रेस का अपना ही महत्व है। इससे प्रशासनिक और सामाजिक स्तर पर जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ती है और आर्थिक विकास को बल मिलता है, लेकिन समाज का चौथा स्तंभ कहलाने वाले प्रेस और पत्रकारों की स्थिति बहुत संतोषजनक भी नहीं है। खासकर भारत देश में पत्रकारों की हालत ज्यादा ही खराब है। महानगरों में काम करने वाले पत्रकार जैसे-तैसे आर्थिक रूप से संपन्न है, मगर छोटे शहरों व कस्बों में काम वाले पत्रकारों की दशा आज इतनी दयनीय है, कि उनकी कमाई से परिवार के लोगों को दो वक्त का खाना मिल जाए, वही बहुत है। हां, यह बात अलग है कि कुछ पत्रकार गलत तरीके से पैसे कमाकर आर्थिक रूप से संपन्न हो रहे है, लेकिन ज्यादातर पत्रकारों को प्रेस की स्वतंत्रता के बावजूद न केवल कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ रहा है, बल्कि उन पर खतरा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के मुताबित पिछले साल विभिन्न देशों में 70 पत्रकारों को जान गंवानी पड़ी, वहीं 650 से ज्यादा पत्रकारों की गिरफ्तारी हुई। इसमें से ज्यादातर मामलों में सरकार व पुलिस ने घटना की छानबीन करने के बाद दोषियों को सजा दिलाने की बड़ी-बड़ी बातें की, मगर नतीजा कुछ नहीं निकला। कुछ दिनों तक सुर्खियों में रहने के बाद आखिरकार मामले को पुलिस ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। कुछ माह पहले छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में सरेराह एक पत्रकार की गोली मारकर हत्या कर दी गई, वहीं छुरा के एक पत्रकार को समाचार छापने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। इन सब मामलों का आखिर क्या हुआ? इसका जवाब पुलिस व सरकार के पास भी नहीं है। इसीलिए अक्सर पत्रकारों के साथ हुई घटनाओं में कार्रवाई के सवाल पर नेता व पुलिस अधिकारी निरूत्तर होकर बगले झांकने लगते हैं। फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के मुताबित वैश्विक स्तर पर प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति में लगातार गिरावट आ रही है। यह गिरावट केवल कुछ क्षेत्रों में नहीं, बल्कि दुनिया के हर हिस्से में दर्ज की गई है। फ्रीडम हाउस पिछले तीन दशकों से मीडिया की स्वतंत्रता का आंकलन करता आया है। उसकी ओर से हर साल पेश किया जाने वाला वार्षिक रिपोर्ट बताता है कि किस देश में मीडिया की क्या स्थिति है। प्रत्येक देश को उसके यहां प्रेस की स्वतंत्रता के आधार पर रेटिंग दी जाती है। यह रेटिंग तीन श्रेणियों के आधार पर दी जाती है। एक, मीडिया ईकाइयां किस कानूनी माहौल में काम करती हैं। दूसरा, रिपोर्टिग और सूचनाओं की पहुंच पर राजनीतिक असर। तीसरा, विषय वस्तु और सूचनाओं के प्रसार पर आर्थिक दबाव। फ्रीडम हाउस ने पिछले वर्ष 195 देशों में प्रेस की स्थिति का आकलन किया है, इनमें से केवल 70 देश में ही प्रेस की स्थिति स्वतंत्र मानी गई है, जबकि अन्य देशों में पत्रकार, प्रेस के मालिक के महज गुलाम बनकर रह गए हैं, जिनके पास अपने अभिव्यक्ति को समाचार पत्र में लिखने की स्वतंत्रता भी नहीं हैं। आज समाज के कुछ लोग आजादी के पहले और उसके बाद की पत्रकारिता का तुलना करते हैं। वे कहते हैं कि पहले की पत्रकारिता अच्छी थी, जबकि ऐसा कहना सरासर गलत होगा। अच्छे और बुरे पत्रकार की बात नहीं है, आज आधुनिक तकनीक के फलस्वरूप पत्रकारिता एक बड़ा उद्योग बन गया है और पत्रकार नामक एक नए किस्म के कर्मचारी-वर्ग का उदय हुआ है। हालात ऐसे बन गए हैं कि दूसरे बड़े उद्योगों को चलाने वाला कोई पूंजीपति इस उद्योग को भी बड़ी आसानी से चला सकता है या अपनी औद्योगिक शुरुआत समाचार-पत्र के उत्पादन से कर सकता है। इस उद्योग के सारे कर्मचारी उद्योगपति के साथ-साथ पत्रकार हैं। यहां पर सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या वास्तव में प्रेस स्वतंत्र है? इसके जवाब में यही बातें सामने आती हैं कि न तो आज प्रेस स्वतंत्र है और न ही पत्रकार की कलम। हकीकत यह है कि प्रेस जहां सरकार के हाथों की कठपुतली बन गई है, वहीं पत्रकार की कलम मालिकों की गुलाम है। आज कोई प्रेस यह दावा नहीं कर सकती है कि वह पूरी तरह से स्वतंत्र है और उसके अखबार में वही छपता है, जो उसके पत्रकार लिखते हैं। कोई पत्रकार भी आज यह दावा नहीं कर सकता है कि वह जिस हकीकत को लिखते हैं उसको छापने का हक उनके पास है! अगर हकीकत यही है तो फिर किस बात की स्वतंत्रता और किस लिए प्रेस स्वतंत्रता दिवस? बहरहाल, विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सभी पत्रकारों को प्रेस की सच्ची स्वतंत्रता के लिए गंभीरता से चिंतन करने की जरूरत है, तभी प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाना सार्थक होगा।आजादी के बाद प्रतकारो ने अपनी कलम को स्वंम बिकाऊ किया .लेकिन जी पत्रकारों ने अपनी कलम क़ि कीमत समझी है आज भे उनकी कलम पूज्यनीय है. माँ सरस्वती क़ि महिमा हम आप पर बनी रहे .

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2 टिप्पणियाँ

  1. कुछ विचारणीय प्रश्नों के साथ एक संतुलित आलेख पसन्द आया। कभी की लिखी खुद की पंक्तियाँ याद आयी-

    लिखूँ जनगीत मैं प्रतिदिन ये साँसें चल रहीं जब तक
    कठिन संकल्प है देखूँ निभा पाऊँगा मैं कब तक
    उपाधि और शोहरत की ललक में फँस गयी कविता
    जिया हूँ बेचकर श्रम को कलम बेची नहीं अब तक

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. प्रकाशक महोदय,
    उपरोक्त आलेख मैंने "विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस" के मौके पर लिखा है, जिसे मैंने कुछ समाचार पत्रों व वेब पोर्टल पर भेजा था, जो प्रकाशित हो चुका है, जबकि उसी आलेख को लेखक महोदय संतोष गंगेले ने चोरी किया और केवल हैडिंग बदलकर अपने नाम से साहित्य शिल्पी यानी आपके इस साइट पर प्रकाशित करा दिया, जो सरासर गलत है। आपका साइट बहुत अच्छा और प्रसिद्ध है, जिसे देश ही नहीं, बल्कि विदेशों के साहित्यकार, पत्रकार व लेखन विधा में रूचि रखने वाले लोग पढ़ते है, इस तरह आपके साइट पर चोरी किए हुए आलेख के प्रकाशन से आपकी विश्वसनीयता को ग्रहण लग सकता है, साथ ही लोगों में गलत संदेश भी जाएगा। आपकी जानकारी के लिए मैं अपने आलेख (जो मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित है) का लिंक व भड़ास फार मीडिया के विचार ब्लॉग का लिंक भेज रहा हूं, कृपया उसे देखे और निर्णय ले, कि यह लेख किसके द्वारा लिखा गया है। बांकी आपकी मर्जी, जो जैसा समझे।
    http://jan-vani.blogspot.com/2011/05/blog-post.html

    http://vichar.bhadas4media.com/media-manthan/1243-2011-05-01-13-03-08.html

    आपका
    राजेन्द्र राठौर
    पत्रकार, जांजगीर-चांपा
    (छत्तीसगढ़) मोबाइल 09770545499

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