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अपने गांव.. पीपल की छांव ,, [कविता] - श्रीकान्त मिश्र ’कान्त’

याची आज फिर इस द्वार
मैं अकिंचन
स्नेह सिंचन
रिक्त वसना सी धरा पर
हृदय आकुल ...
भटकता ले तमस में
नयन अविरल धार ...
आज बारम्बार ...
हां मैं आज फिर इस द्वार

तड़्पता हूं मीन
सूखा सर निरन्तर
विहग दल की कूक से
आतप निरन्तर...
खींचता वो कौन ..
अनजाने ड्गों से
देखता है कौन ..
अनजाने दृगों से..
कण्टकों से ढ्का ये पथ
विलोपित रसधार ...

है क्यों बन्द अब भी द्वार
याची मैं निरन्तर
एक तेरे द्वार
बस मैं एक तेरे द्वार

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5 टिप्पणियाँ

  1. आतप निरन्तर...
    खींचता वो कौन ..
    अनजाने ड्गों से
    देखता है कौन ..
    बहुत खूबसूरत भाव की पंक्तियाँ श्री कान् भाई। वाह।
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  2. तड़्पता हूं मीन
    सूखा सर निरन्तर
    विहग दल की कूक से
    आतप निरन्तर...
    खींचता वो कौन ..
    अनजाने ड्गों से
    देखता है कौन ..
    sunder
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  3. Acchii rachana Badhaaii
    Prabhudayal Shrivastava

    जवाब देंहटाएं

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