रोज़ नया एक ख़्वाब सजाना भूल गए
हम पलकोँ से बोझ उठाना भूल गए
साथ निभाने की कसमेँ खाने वाले
भूले तो सपनोँ मेँ आना भूल गए
जब से तुमने नज़र मिलाना छोड़ दिया
हम लोगोँ से हाथ मिलाना भूल गए
उनसे मिलने उनके घर तक जा पहुँचे
क्योँ आये हैँ यार बहाना भूल गए
झूठोँ ने सारी सच्ची बातेँ सुन लीँ
सूली पर मुझको लटकाना भूल गए
पीने वाले मस्जिद तक कैसे पहुँचे
हैरत है ग़ालिब मैख़ाना भूल गए
तुमने जब से छत पर आना शुरु किया
लोग उतरकर नीचे जाना भूल गए
चकाचौँध मेँ बिजली की ऐसे खोये
कब्रोँ पर हम दीये जलाना भूल गए
दर्द पे कुछ लिखने की मैँने क्या सोची
मीर भी अपना दर्द सुनाना भूल गए
अंग्रेजी का भूत चढ़ा ऐसा सिर पर
बच्चे हिन्दी मेँ तुतलाना भूल गए
7 टिप्पणियाँ
wah ! bahut achche !
जवाब देंहटाएंAvaneesh
उनसे मिलने उनके घर तक जा पहुँचे
जवाब देंहटाएंक्योँ आये हैँ यार बहाना भूल गए
बहुत खुब।
बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ......!!
अच्छी गज़ल...बधाई
जवाब देंहटाएंअंग्रेजी का भूत चढ़ा ऐसा सिर पर
जवाब देंहटाएंबच्चे हिन्दी मेँ तुतलाना भूल गए
Raashtra bhaashaa par angrezi ke haawii hote jaane par vyakt chintaa! aabhaar aur swaagatey.
एक शानदार गजल...बधाई.......
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब क्या कहने लाजवाब ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.