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बैसाखियों पे चल रही ये सरकार, देखिए [ग़ज़ल] - हिमकर श्याम


कल के रहजन बन गये शहरयार, देखिए
बैसाखियों पे चल रही ये सरकार, देखिए

तारीकियाँ, मायूसियाँ, तबाहियाँ और बलाएँ
बह रही इस मुल्क में कैसी बयार देखिए

दुकान सजाये बैठे हैं सदाक़¬तो ईमान बेचने
रिश्वतों पे चल रहा सारा कारोबार, देखिए

किस मुक़आम पे जा पहुँची तर्जे़ सियासत यहाँ
हुकूमतों में बैठे जम्हूरियत के ठेकेदार देखिए

हदे निगाह तक है बस वही सूरत-ए-हालात
झूठी तसल्लियों पे बैठे है कितने बेदार, देखिए

सियासत के खु़दाओं तक पहुँचती नहीं अब सदा
दब गयी फ़ाक़ों में आवाम की पुकार, देखिए

हर दिन बदल जाती है यहाँ शर्ते जिन्दगानी
बन गया यहाँ आदमी कितना लाचार, देखिए

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शहरयार: शासक, बेदार: जाग्रत, फाकों में: गरीबी में
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5, टैगोर हिल रोड
मोराबादी, रांचीः 8

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6 टिप्पणियाँ

  1. एक सटीक चित्रण आज की सियासी हालात का | ए खुदा इन रहनुमाओं को कुछ तो अक्ल दे |

    जवाब देंहटाएं
  2. यथार्थवादी गज़ल

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी रचनाओं को पसंद करने के लिए आप सबों का हार्दिक आभार.

    आपका स्नेह और प्रोत्साहन ही मुझे और लिखने के लिए प्रेरित करता है.

    जवाब देंहटाएं
  4. तु हूँऽ लूटऽ हमहूँऽ लूटींऽ लूऽटे के आजादी बाऽ
    दूनो गोरा तब तक लूऽटी जब तक देऽह पर खादी बाऽ।

    जवाब देंहटाएं

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