
दद्दा बौ खों काये अब तक रखें तकाकें|
अबलो इनखों काये छाती पे लादें हो
कैत रेत घरवारी सबखों सुना सुना कॆं|
लड़का बच्चा सोई अब घिनयान लगे हैं
दूर भगत हैं दद्दा बौ सें डरा डरा कें|
बड्डे भैया सोई अब गरयात कैत हैं
इनसें पिंड छुड़ालो भैया काऊ तरासें|
चलिये दोई जने अब चलिये वृद्धाश्रम खों
उतई छोड़ आहें इनखों लहा पटाकें|
हमने कई दद्दा बौ तो भगवान होत हैं
इनखों तो संगे रख हें सब कछू गवांके|
जे ने होते तो हम कां सें पैदा होते
खुश हें हम इनके चरनन में शीश नवाकें|
घरवारी उर भैयाखों हो कौनउं उजरा
रेन लगें वे कहूं दूसरी जागा जाकें|
आंचलिक भाषा बुंदेली में- बुंदेली गज़ल
2 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंबहुतै अच्छी कई भैया. हमऊ बुन्देलखंडी हैं टीकमगढ़ के सो आपकी जे कविता हमाए मन खों भी छू गई. आप कां के हो?
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.