
आज लगता है शायद बदल गया है आदमी ,
अपने लगाये आग में ही जल गया है आदमी,
कल जिस चीज की ओर नजर भी नही फेरता था,
आज उसी के लिए ही क्यूँ मचल गया है आदमी ,
कल तक था जो पत्थरों की तरह अडिग ,
आज बर्फ की तरेह क्यूँ गल गया है आदमी ,
कल तक तो जिसकी कोई सीमा ही तय नही नही थी,
आज तो साचें में ही ढल गया है आदमी,
डरता था जो कभी धोखे की बात करने से भी,
आज तो विश्वास को ही मसल गया है आदमी,
कल डरता था आसमा की और देखने से जो ,
आसमा को आज पैरों तले कुचल गया है आदमी ,
कल तक खून के दबे से डरता था जो ,
आज करके एक क़त्ल गया है आदमी ,
बताता था कल आदमी की पहचान जो ,
आदमियत को आज वह बदल गया है आदमी ,
अपने लगाये आग में ही जल गया है आदमी ,
आदमी के मायने बदल गया है आदमी
राजीव कुमार पाण्डेय
पेशे से :- Institute of Engineering and Technology. GIDA Gorakhpur . में अध्यापन कार्य .
1996 से साहित्य सेवा की शुरुआत जो अभी भी चल रही है ..
संपर्क सूत्र :- 09454485904
5 टिप्पणियाँ
bhut bhut dhywadi hu mai Sahity Shilpi pariwar ka ..
जवाब देंहटाएंsadar neh aur aabhar..
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना....बधाई !!
जवाब देंहटाएंइस युग के मुताबिक आपकी कविता बिलकुल सही है !
जवाब देंहटाएंमनुष्य अपनी मनुष्यता को खोता जा रहा है .......!
जब मैंने आपको कविता को पढ़ा काफी अच्छा लगा !
Hitendra Singh
From : Bihar
Graphic and Webdesinger
09582874771
aap sbhi ne hmari kavita pasand kiya iske liye hum aapke bhari hein........
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.