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काश की तुम मेरी ज़िन्दगी में न आये होते..[कविता] - मानव मेहता


काश की मेरी आँखों में ये नूर न होता,
मुझे अपने आप पे इतना गरूर न होता..
मेरी ये हंसी किसी दिल को न तडपाती,
मुझे देख कर न किसी की आह निकल पाती..

यूँ होता की मेरे होंठ भी दर्द की दास्ताँ होते,
मेरे दिल के हालात इनके ज़रिये तो ब्यान होते..
मेरे ख्वाबों की भी कभी कोई सहर तो आती,
मुझ पर यूँ उसकी नज़र ठहर तो न जाती..

मेरे हाथों की लकीरों में यूँ तेरा नाम न होता,
तो मेरी दुनिया का शायद कुछ और ही मुकाम होता..
अपनी ज़िन्दगी को अपने हाथों से यूँ न खोते,
काश की तुम मेरी ज़िन्दगी में न आये होते..
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2 टिप्पणियाँ

  1. बहुत रोचक और सुस्वादु कविता

    जवाब देंहटाएं
  2. कविता में कवि का द्वंद स्पष्ट दिखयी दे रहा है पंक्तियों के माध्यम से। शुभकामनाएं।
    सादर
    श्यामल सुमन
    +919955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

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