प्यारे बच्चों,
"बाल-शिल्पी" पर आज आपके डॉ. मो. अरशद खान अंकल आपको "अपनी धरोहर" के अंतर्गत कवि कामता प्रसाद गुरु से परिचित करायेंगे। तो आनंद उठाईये इस अंक का और अपनी टिप्पणी से हमें बतायें कि यह अंक आपको कैसा लगा।
- साहित्य शिल्पी
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कामता प्रसाद गुरु
कामता प्रसाद गुरु का जन्म 1875 में, सागर में हुआ था। उन्होंने 'हिंदी व्याकरण शीर्षक से हिंदी की पहली व्याकरण पुस्तक लिखी। इस कारण उन्हें हिंदी का पाणिनि भी कहा जाता है। द्धिवेदी युग में प्रकाशित होने वाली बाल पत्रिका 'बालसखा का संपादन भी उन्होंने किया। बच्चों के आरंभिक पाठयक्रम निर्माण में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। उनकी 'छड़ी और 'सोने की थाली कविताएं पाठयक्रम में वषोर्ं तक पढ़ार्इ जाती रहीं। उनकी बाल कविताओं की दो पुस्तकें 'पध पुष्पावली और 'सुदर्शन प्रकाशित हैं। उनकी मृत्यु 1947 में हुर्इ। प्रस्तुत है उनकी चर्चित कविता 'छड़ी--
यह सुंदर छड़ी हमारी,
है हमें बहुत ही प्यारी।
यह खेल समय हर्षाती,
मन में है साहस लाती।
तन में अति जोर जगाती,
उपयोगी है यह भारी।
हम घोड़ी इसे बनाएं,
कम घेरे में दौड़ाएं।
कुछ ऐब न इसमें पाएं,
है इसकी तेज सवारी।
यह जीन लगाम न चाहे,
कुछ काम न दाने का है।
गति में यह तेज हवा है,
यह घोड़ी जग से न्यारी।
यह टेक छलांग लगाएं,
उंगली पर इसे नचाएं।
हम इससे चक्कर खाएं,
हम हल्के हैं यह भारी।
हम केवट हैं बन जाते,
इसकी पतवार बनाते,
नैया को पार लगाते,
लेते हैं कर सरकारी।
इसको बंदूक बनाकर,
हम रख लेते हैं कंधे पर,
फिर छोड़ इसे गोली भर,
कितनी है भरकम-भारी।
अंधे को बाट बताए,
लंगड़े का पैर बढ़ाए।
बूढ़े का भार उठाए,
यह छड़ी परम उपकारी।
लकड़ी यह बन से आर्इ,
इसमें है भरी भलार्इ,
है इसकी सत्य बड़ार्इ,
इससे हमने यह धारी।
4 टिप्पणियाँ
सार्थक पोस्ट और कामता प्रसाद जी की 'छड़ी' रचना तों बहुत अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार इस अति दुर्लभ कविता की प्रस्तुति के लिये। अरशद जी सचमुच बाल साहित्य के लिये समर्पित हैं।
जवाब देंहटाएंअंधे को बाट बताए,
जवाब देंहटाएंलंगड़े का पैर बढ़ाए।
बूढ़े का भार उठाए,
यह छड़ी परम उपकारी।
सार्थक रचना
कामता प्रसाद जी को याद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.