अज़ाब जि़न्दगी के उठाते रहिए
जख़्मों पे मरहम लगाते रहिएहौसलें दूरियां मिटाते हैं
हौसले को अपने बढ़ाते रहिए
बड़े सख्त हैं वफाओं के रास्ते
शम-ए-उल्फ़त युं ही जलाते रहिए
बहा लेंगी ये लहरें घरौंदो को
लहरों से घरौंदा बचाते रहिए
बंदिशें खुद ही टूट जाऐगी
बस ग़ाम, हर ग़ाम उठाते रहिए
क्यों रहैं युं हसरते बहार लिए
गुल खिज़ांओं में खिलाते रहिए
बारे-ग़़म से घबराना कैसा
ग़़म को सीने से लगाते रहिए
देखिए छाले पांवों के न अभी
इरादे का परचम लहराते रहिए
• अजाब : तकलीफपीड़ा
• बारे-गम : गम का बोझ
• गाम : पग
हिमकर श्याम
4 टिप्पणियाँ
अच्छी गज़ल...बधाई
जवाब देंहटाएंअभिषेक जी,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रियाएं उत्साह बढ़ातीं हैं.
स्नेह बनाएं रखें.
बहुत अच्छी ग़ज़ल है।
जवाब देंहटाएंअच्छी गजल पढने को मिली है.बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.