किसी को क्या पता जो महफिलों की जान होता है
कभी होता है जब तन्हा तो कितनी देर रोता है
यह दुनिया है यहा होती है आसानी भी मुशिकल भी
बुरा भी खूब होता है यहा अच्छा भी होता है
तेरी यादों के बादल से गुज़र होता है जब इसका
उदासी का परिन्दा मुझसे मिलकर खूब रोता है
किसी को रिश्ते फूलों की तरह महकाऐ रखते हैं
कोर्इ रिश्तों का भारी बोझ सारी उम्र ढोता है
बढ़ेगी उम्र जब उसकी तब उसका हाल पूछेंगे
अभी तो छोटा बच्चा है सुकूं की नीन्द सोता है
'जि़या क्या शौक है चीजे़ं पुरानी जमा करने का
ज़रा सा दिल है दुनिया भर की यादों को संजोता है
4 टिप्पणियाँ
सुन्दर गज़ल... उम्दा शेरों की माला बनी है... .मेरे ब्लॉग अमृतरस पर भी आपका स्वागत है |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी ग़ज़ल है।
जवाब देंहटाएंकिसी को रिश्ते फूलों की तरह महकाऐ रखते हैं
जवाब देंहटाएंकोर्इ रिश्तों का भारी बोझ सारी उम्र ढोता है
बहुत खूब
किसी को रिश्ते फूलों की तरह महकाऐ रखते हैं
जवाब देंहटाएंकोर्इ रिश्तों का भारी बोझ सारी उम्र ढोता है
बहुत खूब - एक अच्छी प्रस्तुति
आस पास देखा तो कितने
ढ़ोते हैं बेचारे रिश्ते.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
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