
मेरा दिल क्यूँ धड़क बैठा, ये साँसें कंपकंपाई क्यूँ
तुम्ही ने कुछ किया होगा, हवाएं तेज आई क्यूँ
अचानक क्यूँ महक आई, आकर छू गयी तन-मन
सिहर उट्ठा बदन मेरा, ये आँखें डबडबाई क्यूँ.
परिंदे रात में, ख्वाबों में आकर गुनगुनाते हैं
नहीं मालूम मेरा गम या अपना गीत गाते हैं
गुटरगूं उनकी सुनने को मैं जब भी कान देता हूँ
झुका कर शर्म से पलकें, परिंदे भाग जाते हैं
लगाना, तोड़ देना दिल, कहो कैसी इनायत है
कभी मुझसे कहा क्यूँ था, मोहब्बत ही इबादत है
जो चाहो फैसला कर लो, मगर सुन लो हमारी भी
है मुजरिम भी तुम्हारा औ तुम्हारी ही अदालत है
कुंवर प्रीतम
कोलकाता
तुम्ही ने कुछ किया होगा, हवाएं तेज आई क्यूँ
अचानक क्यूँ महक आई, आकर छू गयी तन-मन
सिहर उट्ठा बदन मेरा, ये आँखें डबडबाई क्यूँ.
परिंदे रात में, ख्वाबों में आकर गुनगुनाते हैं
नहीं मालूम मेरा गम या अपना गीत गाते हैं
गुटरगूं उनकी सुनने को मैं जब भी कान देता हूँ
झुका कर शर्म से पलकें, परिंदे भाग जाते हैं
लगाना, तोड़ देना दिल, कहो कैसी इनायत है
कभी मुझसे कहा क्यूँ था, मोहब्बत ही इबादत है
जो चाहो फैसला कर लो, मगर सुन लो हमारी भी
है मुजरिम भी तुम्हारा औ तुम्हारी ही अदालत है
कुंवर प्रीतम
कोलकाता
4 टिप्पणियाँ
अच्छे मुक्तक...बधाई
जवाब देंहटाएंसभी मुक्तक अपने आप में मुकम्मल और प्रशंसनीय - बहुत सुन्दर प्रस्तुति - शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
कुंवर जी वाह क्या बात हैं
जवाब देंहटाएंक़माल का लिखा हैं
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.