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करो बुवाई......[नवगीत] - आचार्य संजीव वर्मा "सलिल"


खेत गोड़कर
करो बुवाई...
*
ऊसर-बंजर जमीन कड़ी है.
मँहगाई जी-जाल बड़ी है.
सच मुश्किल की आई घड़ी है.
नहीं पीर की कोई जडी है.
अब कोशिश की
हो पहुनाई.
खेत गोड़कर
करो बुवाई...
*
उगा खरपतवार कंटीला.
महका महुआ मदिर नशीला.
हुआ भोथरा कोशिश-कीला.
श्रम से कर धरती को गीला.
मिलकर गले
हँसो सब भाई.
खेत गोड़कर
करो बुवाई...
*
मत अपनी धरती को भूलो.
जड़ें जमीन हों तो नभ छूलो.
स्नेह-'सलिल' ले-देकर फूलो.
पेंगें भर-भर झूला झूलो.
घर-घर चैती
पड़े सुनाई.
खेत गोड़कर
करो बुवाई...
*

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4 टिप्पणियाँ

  1. मत अपनी धरती को भूलो.
    जड़ें जमीन हों तो नभ छूलो.
    जमीन से जुड़े आह्वान ..
    बेहतरीन नवगीत

    जवाब देंहटाएं
  2. उगा खरपतवार कंटीला.
    महका महुआ मदिर नशीला.
    हुआ भोथरा कोशिश-कीला.
    श्रम से कर धरती को गीला.
    मिलकर गले
    हँसो सब भाई.
    खेत गोड़कर
    करो बुवाई...
    bahutu sunder abhivyakti
    saader
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  3. आप सबकी गुणग्राहकता को नमन.

    जवाब देंहटाएं

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