जब गुजर कर सफ़र से थक जाता हूँ मै
तब-तब उस गाँव के पुराने घर जाता हूँ मै
तब-तब उस गाँव के पुराने घर जाता हूँ मै
गाँव के आम के बगीचे में जितना हम तोड़ कर फेंक दिया करते थे,
उससे बहुत कम इस शहर में पैसे के बराबर तौल कर लाता हूँ में ..
उससे बहुत कम इस शहर में पैसे के बराबर तौल कर लाता हूँ में ..
जब भी मिलता हूँ इस शहर में किसी से बनकर के अपना,
वो कहता है रुकिए अभी दिल बदल कर आता हूँ मै .
वो कहता है रुकिए अभी दिल बदल कर आता हूँ मै .
हर मोड़ पे अनशन और बंदी ही देखा है इस शहर,
और हर कोई कहता है कि रुकिए मै सता बदलकर आता हूँ मै ,
और हर कोई कहता है कि रुकिए मै सता बदलकर आता हूँ मै ,
जिनके घरों में कुते भी पहनते हैं विदेशों की "टाइयाँ",
कहते हैं वे भी कि देश से प्रेम है इस लिए खादी पहनकर आता हूँ मै,
कहते हैं वे भी कि देश से प्रेम है इस लिए खादी पहनकर आता हूँ मै,
अपने उसूलों को अब भी बचा कर के रखा है हमने ,
शायद इस लिए लोग दूर हो जाते हैं जिधर जाता हूँ मै ,
लोगों को आदमी नही
अजायब घर में रखा हुआ इन्सान नजर आता हूँ मै ...
शायद इस लिए लोग दूर हो जाते हैं जिधर जाता हूँ मै ,
लोगों को आदमी नही
अजायब घर में रखा हुआ इन्सान नजर आता हूँ मै ...
2 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता..बधाई
जवाब देंहटाएंजब भी मिलता हूँ इस शहर में किसी से बनकर के अपना,
जवाब देंहटाएंवो कहता है रुकिए अभी दिल बदल कर आता हूँ मै .
bahut sunder bhav
rachana
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.