आज फ़िर जीने की ख्वाहिश जागी है;
आज फ़िर एक सुहाना ख्वाब देखा था.
आज फ़िर एक सुहाना ख्वाब देखा था.
सुबह के धुंधलके में, लालिम रोशनी के साथ;
एक नई मंज़िल का साथ देखा था.
एक पुराना मर्ज़ था, सीने में दबा-सा;
उसका ही खातिब, इलाज़ देखा था.
मरासिमों के फ़ंदे, घुटन दे रहे थे;
मरासिमों से खुद को आज़ाद देखा था.
सेहर नया है, नई इक सोच है;
इस सोच से मुखातिब, खुद को एक बार देखा था.
आज फ़िर जीने की ख्वाहिश जागी है,
आज फ़िर एक सुहाना ख्वाब देखा था..
1 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता...बधाई
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