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माहौल [लघुकथा] - किशोर श्रीवास्तव


अपने पड़ोस में एक रिक्शे वाले को बसता देख उसका माथा ठनका। उसने सोचा, उसके घर में तो पहले से ही आए दिन छोटे.मोटे घरेलू झगड़े होते रहते हैं, अब इस रिक्शे वाले के पड़ौस में आ जाने से तो माहौल और भी खराब हो जाएगा। रिक्शे-तांगे वाले तो बिना खाए-पिए और लड़े-झगड़े घर में रह ही नहीं सकते। यह भी रोज़ाना दारू पीकर घर में लड़े-झगड़ेगा और मेरे घर-परिवार का माहौल और खराब होगा।

वह एक सप्ताह तक इसी तनाव से ग्रस्त रहते हुए ईश्वर से प्रार्थना करता रहा कि वह जल्द से जल्द इस रिक्शे वाले को उसके घर से दूर पहुँचा दे।

और उस दिन जब उसने रिक्शे वाले को कमरा खाली करके अपने बीबी-बच्चों के साथ अन्यत्र जाते देखा तो वह खुशी से फूला नहीं समाया। कौतूहलवश जब उसने एक अन्य रिक्शे वाले से उसके इस तरह से अचानक कमरा खाली करके दूसरी जगह जाने की बाबत पूछा तो वह बोला, साहब जहॉं तक मुझे पता चला है कि वह यहॉं आकर बहुत दुखी था। दरअसल वह यहॉं यह सोचकर आया था कि उसे संभ्रांत लोगों के इस मोहल्ले में कुछ अच्छा माहौल मिलेगा और वह अपने बीबी-बच्चों की परवरिश अच्छे ढंग से कर सकेगा परन्तु किन्हीं पड़ौसियों की आए दिन की घरेलू लड़ाई-झगड़ों ने उसे यहॉं चौन से रहने ही नहीं दिया। अब तुम्ही बताओ बाबूजी, इस तरह के लड़ाई-झगड़े वाले माहौल में कोई शरीफ आदमी भला कैसे रह सकता है। कहीं पड़ौसी के घर की लड़ाई-झगड़े का असर उसके घर तक पहुंच जाता तो वह ग़रीब बेचारा तो कहीं का नहीं रहता।


                                                                                  - किशोर श्रीवास्तव

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5 टिप्पणियाँ

  1. bahut sunder laghu katha .padh kr laga ki sach hi kaha hai
    saader
    rachana

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  2. क्या बात है? वाह किशोर जी. व्यंग्य के साथ सन्देश देती हुई अच्छी प्रस्तुति.
    सादर
    श्यामल सुमन
    +919955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. kishor ji, bahut hi sundar prastuti rahi, itna acch sandesh dene ke liye thanks.

    जवाब देंहटाएं
  4. पढ़ने व प्रतिक्रिया देने के लिए आप सबका आभारी हूं।

    जवाब देंहटाएं

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