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सूरज-सा चमकें [फुलवारी] - अखिलेश श्रीवास्तव 'चमन’ {बाल शिल्पी अंक 19} प्रस्तुति - डॉ. मो. अरशद खान

प्यारे बच्चों,
"बाल-शिल्पी" पर आज आपके डॉ. मो. अरशद खान अंकल आपको "फुलवारी" के अंतर्गत अखिलेश श्रीवास्तव 'चमन’ अंकल की कविता "सूरज-सा चमकें" पढवा रहे हैं। तो आनंद उठाईये इस अंक का और अपनी टिप्पणी से हमें बतायें कि यह अंक आपको कैसा लगा।

- साहित्य शिल्पी
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सुमन बनें हम हर क्यारी के बन उपवन महकें,
चलो दोस्त हम सूरज बनकर धरती पर चमकें।


एक धरा है, एक गगन है,
सबकी खातिर एक पवन है,
फिर क्यों बंटा-बंटा-सा मन है ?
आओ स्नेह कलश बनकर हम हर उर में छलकें
चलो दोस्त हम सूरज बनकर धरती पर चमकें।


कहीं खो गया है अपनापन,
सबके होठों पर सूनापन,
चुप्पी साधे हर घर आंगन।
बुलबुल, कोयल, मैना बनकर डाल-डाल चहकें
चलो दोस्त हम सूरज बनकर धरती पर चमकें।


नयन किसी के रहें न गीले,
हंसते-हंसते जीवन जी लें,
अमृत-विष मिलजुलकर पी लें।
हर मुशिकल से तपकर निकलें कुंदन बन दमकें।
चलो दोस्त हम सूरज बनकर धरती पर चमकें।


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अखिलेश श्रीवास्तव 'चमन, लखनऊ,(0प्र0)

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5 टिप्पणियाँ

  1. कितना सुन्दर गीत


    नयन किसी के रहें न गीले,
    हंसते-हंसते जीवन जी लें,
    अमृत-विष मिलजुलकर पी लें।
    हर मुशिकल से तपकर निकलें कुंदन बन दमकें।
    चलो दोस्त हम सूरज बनकर धरती पर चमकें।

    जवाब देंहटाएं
  2. यदि बाल गीतों कोस्वर के साथ भी प्रस्तुत किया जाये तो आनंद दुगुना हो जायेगा।

    जवाब देंहटाएं
  3. इसमें भोत कुछ पढ़ने के लिए हैं।

    जवाब देंहटाएं
  4. इसमें बहुत कुछ बच्चों के पढ़ने को है।

    जवाब देंहटाएं

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