
इस तरह कुछ आजकल अपना मुक़द्दर हो गया
सर को चादर से ढका तो पाँव बाहर हो गया
ज़िंदगी को हार का तोहफ़ा मिला तो यूँ लगा
आँसुओं का सिलसिला पलकों का ज़ेवर हो गया
जब तलक दुःख मेरा दुःख था एक क़तरा ही रहा
मिल गया दुनिया के ग़म से तो समंदर हो गया
मुश्किलों के दरमियाँ बढ़ते रहे जिसके क़दम
वो ज़माने की निगाहों में सिकंदर हो गया
इस क़दर बदला है चेहरा आदमी ने इन दिनों
कल तलक जो आईना था आज पत्थर हो गया
थी जहाँ फूलों की बारिश, ख़ूँ का दरिया है वहाँ
क्या उम्मीदें थीं रुतों से क्या ये मंज़र हो गया
सर को चादर से ढका तो पाँव बाहर हो गया
ज़िंदगी को हार का तोहफ़ा मिला तो यूँ लगा
आँसुओं का सिलसिला पलकों का ज़ेवर हो गया
जब तलक दुःख मेरा दुःख था एक क़तरा ही रहा
मिल गया दुनिया के ग़म से तो समंदर हो गया
मुश्किलों के दरमियाँ बढ़ते रहे जिसके क़दम
वो ज़माने की निगाहों में सिकंदर हो गया
इस क़दर बदला है चेहरा आदमी ने इन दिनों
कल तलक जो आईना था आज पत्थर हो गया
थी जहाँ फूलों की बारिश, ख़ूँ का दरिया है वहाँ
क्या उम्मीदें थीं रुतों से क्या ये मंज़र हो गया

4 जून 1958 को सुलतानपुर (उ.प्र.) में जन्मे देवमणि पांडेय हिन्दी और संस्कृत में प्रथम श्रेणी एम.ए. हैं।
अब तक आपके दो काव्यसंग्रह प्रकाशित हो चुके हैं- "दिल की बातें" और "खुशबू की लकीरें"।
पांडेय जी ने फ़िल्म 'पिंजर', 'हासिल' और 'कहाँ हो तुम' के अलावा कुछ सीरियलों में भी गीत लिखे हैं। फ़िल्म 'पिंजर' के गीत "चरखा चलाती माँ" को वर्ष 2003 के लिए 'बेस्ट लिरिक आफ दि इयर' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
3 टिप्पणियाँ
मुश्किलों के दरमियाँ बढ़ते रहे जिसके क़दम
जवाब देंहटाएंवो ज़माने की निगाहों में सिकंदर हो गया
bahut sunder puri gazal bahut sunder hai
saader
rachana
Sundar aur prabhaawit kartii gazal.
जवाब देंहटाएंअच्छी गज़ल...बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.