
सब्र को हमारे मिले कभी सौगात भी
मिले इन आंखों को लुत्फे हयात भी
न रंजो-गम, न नफरत की हवा कहीं
दिल से दिल की हो अब मुलाकात भी
न फासले रहें, न बंदिश कोई रहे
प्यार की छांव में बीते दिन-रात भी
निगाहों में बहार हो, बांहों में संसार
चाहतों से महके सारी कायनात भी
लफ्ज हों तो दुआ बनें, बिखरें तो सदा
आंखों से अयां हो दिल की बात भी
खुशबू बहार की बिखरे इन फिजाओं में
जुल्फों से खेले सावन की बरसात भी
अयां : जाहिर
मिले इन आंखों को लुत्फे हयात भी
न रंजो-गम, न नफरत की हवा कहीं
दिल से दिल की हो अब मुलाकात भी
न फासले रहें, न बंदिश कोई रहे
प्यार की छांव में बीते दिन-रात भी
निगाहों में बहार हो, बांहों में संसार
चाहतों से महके सारी कायनात भी
लफ्ज हों तो दुआ बनें, बिखरें तो सदा
आंखों से अयां हो दिल की बात भी
खुशबू बहार की बिखरे इन फिजाओं में
जुल्फों से खेले सावन की बरसात भी
अयां : जाहिर
2 टिप्पणियाँ
बहुत खूब! लाजवाब गज़ल.
जवाब देंहटाएंअच्छी गज़ल...बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.