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सब्र को हमारे मिले कभी सौगात भी [ग़ज़ल] - हिमकर श्याम

सब्र को हमारे मिले कभी सौगात भी
मिले इन आंखों को लुत्फे हयात भी

न रंजो-गम, न नफरत की हवा कहीं
दिल से दिल की हो अब मुलाकात भी

न फासले रहें, न बंदिश कोई रहे
प्यार की छांव में बीते दिन-रात भी

निगाहों में बहार हो, बांहों में संसार
चाहतों से महके सारी कायनात भी

लफ्ज हों तो दुआ बनें, बिखरें तो सदा
आंखों से अयां हो दिल की बात भी

खुशबू बहार की बिखरे इन फिजाओं में
जुल्फों से खेले सावन की बरसात भी

अयां : जाहिर

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