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भारत [राष्ट्रभक्ति गीत] - डॉ. अ कीर्तिवर्धन



कण-कण में जहाँ शंकर बसते,बूँद-बूँद मे गंगा,
जिसकी गौरव गाथा गाता,विश्व विजयी तिरंगा|

सागर जिसके चरण पखारे,और मुकुट हिमालय,
जन-जन में मानवता बसती,हर मन निर्मल,चंगा|

वृक्ष धरा के आभूषण,और रज जहाँ कि चन्दन,
बच्चा-बच्चा राम-कृष्ण सा,बहती ज्ञान कि गंगा|

विश्व को दिशा दिखाती,आज भी वेद ऋचाएं,
कर्मयोग प्रधान बना,गीता का सन्देश है चंगा|

'अहिंसा तथा शांति' मंत्र, जहाँ धर्म के मार्ग,
त्याग कि पराकाष्ठा होती, 'महावीर'सा नंगा|

भूत-प्रेत और अंध विश्वाश का,देश बताते पश्छिम वाले,
फिर भी हम है विश्व गुरु,अध्यातम सन्देश है चंगा|

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4 टिप्पणियाँ

  1. देशभक्ति की भावना से भरा गीत।

    जवाब देंहटाएं
  2. आमतौर पर देश-भक्ति पूर्ण गीत स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के आस पास ही लोगों को याद आते हैं. अत: इस समय यह पढ़ कर अच्छा लगा.
    भारत का अतीत निस्संदेह गौरवपूर्ण है, परंतु एक बात जब बार-बार दोहराई जाये तो वह अपना प्रभाव खोने लगती है. हमारे वर्तमान में भी कुछ अच्छी चीजें हैं, उन के विषय में भी कुछ कहा जाता तो शायद बेहतर रहता. प्रस्तुतिकरण के स्तर पर भी कोई नवीनता नहीं है.

    जवाब देंहटाएं
  3. गीत अच्छा है किंतु और बेहतर हो सकता था।

    जवाब देंहटाएं

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