क्यूं उठता है धुंए का गुबार
क्यूं थमती है जीवन की रफ्तार
क्यूं होता है यह बार-बार
कौन है इसका गुनाहगार
कभी लश्कर, कभी अजमल
मौत का खौफ यहां हरपल
सीने में दबे हैं जख्म कई
हौसले का सरताज मुंबई
आतंकियों की नयी जमात
न देखे मजहब, न देखे जात
क्या जाने वो किसी का दर्द
वो तो है बस दहशतगर्द
सारी उम्मीदें हैं लहूलुहान
सस्ती यहां इन्सानी जान
सब्र का न लो यूं इम्तेहां
बंद हो अब अनर्गल बयां
सुन ओ! बेफ्रिक सियासतदां
एक बेबस शहर की दास्तां
हर कोशिश लगती नाकाम
फिर भी सब करते सलाम
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हिमकर श्याम
5, टैगोर हिल रोड
मोराबादी, रांचीः 8
11 टिप्पणियाँ
सुन ओ! बेफ्रिक सियासतदां
जवाब देंहटाएंएक बेबस शहर की दास्तां
हर कोशिश लगती नाकाम
फिर भी सब करते सलाम
पता नहीं कब यह सब बंद होगा?
आतंकवाद की भर्त्सना होनी चाहिये।
जवाब देंहटाएंकसाब की मेहमान नवाजी में एक साल में ३१ करोड़ खर्च किये जाते हैं, जबकि मुंबई हादसे में मारे गए लोगों को पांच लाख देने की घोषणा की जाती है. यही कीमत रह गयी है हमारे देश में एक आम आदमी की जान की.
जवाब देंहटाएंमुंबई की पीड़ा व्यक्त करती यह कविता वाकई में हमें सोचने को मजबूर करती है.
बंद हो अब अनर्गल बयां !!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंअगर यह बंद हो गया तो सियासतदांनो की दुकान कैसे चलेगी ????
सलाम मुम्बई।
जवाब देंहटाएंहर शाख पे उल्लू बैठे हैं, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा?????
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंकौन है इसका गुनाहगार .... ?
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता बधाई
सरल शब्दों और सहज भावों के साथ समसामयिक विषय का चयन इस कविता की खासियत है।
जवाब देंहटाएंमुंबई के मर्म का सटीक विश्लेषण के लिए बधाई!
प्रेमशंकर
अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. उम्मीद है यह स्नेह आगे भी मिलता रहेगा.
जवाब देंहटाएं:लुटेरों की ये जन्नत है
जवाब देंहटाएंजिसे दिल्ली समझते हैं,"
दम घोटने वाला माहौल है अभी देश में. कांग्रेस अभी पुरे खुमार पे है, क्यूँ की कोई विरोधी दल अभी मजबूत है भी नहीं. और ये तो हमेशा से ही होते आया है, अंग्रजों ने तो कांग्रेस को तो मौज मस्ती का क्लब घोषित कर चुके थे.
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