सभी रास्ते खुले खुले हैं
गलियों में भी नहीं रुकावट
किंतु हमारे दो पैरों को
पता नहीं कहां जाना है
दसों दिशायें सूनी सूनी
क्षितिज दे रहा आभा खूनी
दूर हुई मंजिल की दूरी
रात चौगुनी और दिन दूनी
चिट्ठी पूरी लिख डाली है
न जानू गंतव्य कहां है
न कोई पता ठिकाना है|
चौराहे पर चार रास्ते
छींक रहे हैं खून खांसते
बगुले हंस बने बैठे हैं
भर भर मुट्ठी भाग्य बांटते
फल आशा के टंगे सामने
न जानू वे किसे मिलेंगे
कैसे उनको पाना है|
निर्भर है सब कुछ माली पर
नाम लिखा है हर डाली पर
पता नहीं पेड़ की रोटी
कब फेके मेरी थाली पर
एकटक ऊपर देख रहा हूं
बरसों से कर रहा प्रतीक्षा
तिनका मिला न दाना है|
7 टिप्पणियाँ
निर्भर है सब कुछ माली पर
जवाब देंहटाएंनाम लिखा है हर डाली पर
पता नहीं पेड़ की रोटी
कब फेके मेरी थाली पर
एकटक ऊपर देख रहा हूं
बरसों से कर रहा प्रतीक्षा
तिनका मिला न दाना है|
बहुत सुन्दर।
दसों दिशायें सूनी सूनी
जवाब देंहटाएंक्षितिज दे रहा आभा खूनी
दूर हुई मंजिल की दूरी
रात चौगुनी और दिन दूनी
चिट्ठी पूरी लिख डाली है
न जानू गंतव्य कहां है
न कोई पता ठिकाना है|
bahut sunder geet
badhai
rachana
चौराहे पर चार रास्ते
जवाब देंहटाएंछींक रहे हैं खून खांसते
बगुले हंस बने बैठे हैं
भर भर मुट्ठी भाग्य बांटते
फल आशा के टंगे सामने
न जानू वे किसे मिलेंगे
कैसे उनको पाना है|
हर पंक्ति में रस है
Shushamaa garajii,rachanaajii and Niteshji, Thanks for comments. Prabhudayal
जवाब देंहटाएंचिट्ठी पूरी लिख डाली है
जवाब देंहटाएंन जानू गंतव्य कहां है
गंतव्य का पता लगाना आज यात्रा से भी अधिक कष्टप्रद हो गया है. गंतव्य को लेकर इसी भ्रम ने आज हमारे समाज को अवसाद और अपराध के दलदल में ला खड़ा किया है.
सुंदर और सरस प्रस्तुति के लिये बधाई!
सधा हुआ मनभावन गीत
जवाब देंहटाएंअच्छा गीत...बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.