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सोसायटी और हम [लघुकथा] - अवनीश एस. तिवारी


मशहूर फिल्म निर्माता समीर खान के घर के बाहर गेट पर पत्रकारों का हुजूम लगा हुया था | लोगों से घीरे खानजी से किसी ने तीखी आवाज़ में पूछा, " खान साहब आपके बेटे को कल पुलिस ने नशे में रेव पार्टी से पकड़ लोकप में रखा है, क्या कहना है इसपर आपका ? "

अपने बेटे की गलतियों पर पर्दा डालते हुए खान ने झुनझुलाते हुए कहा, " अजी माहौल ही खराब है, सोसायटी बिगड़ी हुयी है, आस - पास के लोगों का असर है |
लोग अपने मतलब के लिए सोसायटी का ख्याल रखे बगैर कुछ भी धंधा करते हैं और यह उसका नतीजा है | "

इतने में किसी दूसरे पत्रकार ने पीछे से आवाज़ लगाए, " सूना है आपकी सी - ग्रेड मूवि दिल्ली की बिल्ली अच्छा पैसा बटोर रही है " ?
इसपर इकठ्ठा हुए लोग हंस पड़े और खान की भौंहे तन गयी|

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9 टिप्पणियाँ

  1. मुम्बई में हुए बमधमाकों के समय इन अभिनेताओं के असली चेहरे सामने आये। एक ओर लाशे बिछी हुई थी तो दूसरी ओर कोई फैशन शो देख रहा था तो कोई पार्टी कर रहा था। लघुकथा अच्छी है अवनीश जी। अंत को थोडा और निखारिये।

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  2. यह तो बॉलिवुड के सभी खानों की कॉमन कहानी है :)

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  3. अच्छी लघुकथा..सही जगह चोट की है।

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  4. व्यंग्य काम कर रहा है।

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  5. मित्रों,

    यह लघुकथा "delhi belly" फिल्म और उसके सामाजिक पक्ष पर है |


    अवनीश तिवारी

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  6. अवनीश नें नें फिल्म डेलीबेली के सामाजिक पक्ष की ओर ध्यान खीचने की बात कही है। सोचने की बात यह है कि सामाजिक स्वीकार्यता एसी फिल्मों या कि सोच को क्यों मिल जाती है?

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  7. जहाँ तक मै समझता हूँ, फिल्में भी परम्परा की दृष्टि से नाट्य-साहित्य का ही एक रूप हैं और साहित्य (स+हित) को समाज के हित की भावना से अनुप्राणित होना आवश्यक है. कला को समाज से अलग सिर्फ कला के उद्देश्य से होने की वकालत करने वालों को यह याद रखना होगा कि समाज के बिना कला महत्वहीन ही नहीं निर्जीव भी हो जायेगी.

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