ओ मारिया.....ओ मारिया ...
‘मैं कैसी दिखती हूँ ?’ उन्होंने इठलाते हुए मुझसे पूछा, उनकी इठलाहट उनकी आवाज से झलक रही थी।
‘ मिसेज चौधरी से अच्छी, मिसेज वर्मा से कम’ मैंने बिना देखे ही उत्तर दिया।
‘ मतलब मैं अच्छी नहीं दिखती?’ उन्हें गुस्सा आया।
‘ नहीं ऐसा मैंने नहीं कहा पड़ोसी चौधरी साब से पूछो तो शायद वॉछित उत्तर मिल जाये ’
‘ आप कम्पेयर क्यों करते हो? निरपेक्ष भाव से नहीं देख सकते?’
‘ विवाहित पुरूष विवाह के दूसरे दिन से ही सापेक्षता के सिद्धान्त में विश्वास करने लगते हैं, स्त्रियों के सिद्धान्त के बारे में मैं घोषणा नहीं कर सकता क्योंकि मैं वो दुर्भाग्य शाली पुरूष हूँ जिसे भरपूर इच्छाशक्ति के बाद भी एकाधिक स्त्रियों की सोहबत नहीं मिली’
‘ अच्छा आत्म कथा छोड़ो, सापेक्षता में बताओ मैं मारिया के कम्पेरिजन में कैसी हूँ’
‘ कौन मारिया? अपने पड़ोस में तो कोई नहीं’
‘ अरे वो क्या नाम है कन्नड, तेलगू़ फिल्म वाली, जिसने कानपुर के छोरे के तीन सौ टुकड़े कर दिये’
‘ओह... फिर बुरा मत मानना......’ मैंने क्षमायुक्त सत्य बोलने का प्रयास किया।
‘ आगे मत बोलो मुझे तो पता हैं तुम्हारे लच्छन, जमाने में झूठ बोलोगे, मुआ सच मेरे सामने ही निकलता है, अपनी छोड़ो मिस्टर चौधरी को मारिया के कम्पेरिजन में मैं कैसी लगूँगी?’
‘ मुझे क्या पता उन्होंने कभी कुछ कहा भी नहीं, एकाध बार मेरे मुकद्दर की तारीफ तो कर चुके हैं लेकिन फिर भी मेरा मानना है कि यदि तुम उनसे पूछो तो वे तुम्हें ही सुंदर बतायेंगे’
‘ क्यों भला?’ वे प्रसन्न हुईं
‘ क्योंकि मारिया उनके लिये अलब्ध काल्पनिक तथ्य है और तुम जीवित सत्य’
‘ तब ठीक है..’ वे आश्वस्त् हुईं, फिर प्रश्नवाचक मुद्रा में आईं"
‘ क्यों जी एक रात में आप इंसान के कितने टुकड़े कर सकते हो?’
‘ टुकड़े ?...इंसान...?’
‘ तीन सौ से तो ज्यादा करने होंगे, मेरा मतलब है....... दस बीस मैं भी करवाऊॅगी, अब आप तो जानते हो मैं मारिया से ज्यादा सुंदर नहीं फिर उसकी उम्र भी कम है, इसलिये ज्यादा पब्लिसिटी के लिये टुकड़े उससे ज्यादा ही करने होंगे’ उनके स्वर में दृढ़ता थी।'
‘ देवी तुम ये कैसे कह सकती हो कि इंसान के टुकड़े करने से पब्लिसिटी मिलती है’
‘ मैं..? पूरी दुनिया कह रही है अखबार, टी.वी. सब, कल तक अन्ना, रामदेव, लोकपाल कब्जा करके बैठे थे अखबार और टी.वी. पर , आज किस गुफा में घुसे पता ही नहीं चल रहा, आज जैसे ही मारिया आजाद हुई ऐसे लपका है कमबख्तों ने जैसे झॉसी की रानी अपनी समाधि में से निकल कर अन्ना का साथ देने आई हो, उसकी प्रेस कान्फ्रेन्स हुई पचासों पत्रकार पहुँचे, याद है ? अपनी किताब के विमोचन का सीन? एक भी पत्रकार नहीं मरा था भरपेट नाश्ते के आश्वासन के बावजूद, एक हजार सात सौ का नाश्ता पडोसियों ने निपटाया था, अपने आप फोटो खींचकर दो सौ रूप्ये के साथ न पहुँचाये होते तो खोया पाया वाले कॉलम में भी न छपते आप? आपकी किताबें आईं रद्दी में बिक भी गईं, बहस हुई कभी आपके कृतित्व और व्यक्तित्व पर? उसने इंसान काटा तो बहसें हो रही हैं उसके कृतित्व पर भी और व्यक्तित्व पर भी, किसी ने बिग बॉस में बुलाया कोई फिल्म दे रहा है, बीस साल साहित्य सेवा करने पर भी आपको दो रूप्ये किलो न पूछा दुनिया ने, वक्त आ गया है अब मुझे अपनी प्रतिभा दिखाने दो ’
‘ बावली वो पहले से हीरोईन थी’
‘ जैसी वो हिरोइन है वैसे साहित्यकार तो आप भी हो मेरे नाम से आत्म कथा लिख देना, खूब बिकेगी, फिल्म भी बनेगी’
‘ क्या गारंटी है?’
‘ अब तक तो यही हुआ है, फूलन पर फिल्म बनी, सीमा परिहार, मोनिका बेदी सब परदे पर आ चुकीं तो मुझमें क्या कमी है ?’
‘ लेकिन उतना रिस्क..?’
‘ अजी कहॉ है रिस्क? रिस्क तब होता है प्रीतम प्यारे जब परिणाम पता न हो, यहॉ तो पता है कि कुछ नहीं होना, तीन सौ टुकड़े के बदले तीन साल और तीन साल के बदले तीन सौ करोड़ बुरा सौदा तो नहीं बस लोकतंत्र में आस्था रखो लोकतंत्र भगवान सब भला करेंगे ’
‘ इसमें लोकतंत्र कहॉ से आया?’
‘ लो जी लो ठेंगे के साहित्यकार हो, लोकतंत्र को पूजोगे तो विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और चौथा स्तंभ मीडिया सब आपका भला करेंगे, पुलिस को नेताजी से फोन करा दो वो सुबूत नहीं जुटायेगी, बल्कि टुकड़े जुड़वाकर फोटो भी आपको दे देगी, सरकारी वकील की सेवा पूजा करो वह श्रद्धावनत होकर कोर्ट में यस मीलार्ड, नो मीलार्ड के अलावा कुछ न बोलेगा, जज साहब को क्या करना न सुबूत न गवाह वो बस मोहिनी मुस्कान देखेंगे और धीमे से फैसला देंगे - देखिये कत्ल तो हुआ है इससे इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन इन्कार इससे भी नहीं कि वहॉ कमरे में सिर्फ तीन लोग थे, एक मकतूल , दूसरी ये मासूम सी कली जिसने पहले दो बार मकतूल के साथ फिर दो बार कातिल के साथ राजी बराजी संसर्ग किया था कल्पना कीजिये कितनी मासूम है ये, सामान्य औरतें इतना सहन कर पाती हैं भला? तीसरा था ये मासूम सी लड़की का बापसूम सा मंगेतर जिसने चाकू हवा में उछाला पर मकतूल बिस्तर पर लेटा ही रहा, अब चाकू को दिमाग नहीं होता लग गया गैर इरादतन, मकतूल मारा गया गैरइरादतन, इसलिये कत्ल तो हुआ पर दोषी कोई नहीं ’
‘ ये कोई बात हुई ? जज साहब तो ऐसे कह रहे हैं जैसे उनके सामने पिक्चर चली हो’
‘ देखिये कमरे में चौथा कोई था ही नहीं इसलिये लड़की की बात मानी जायेगी’
‘ लड़की तो कातिलों में है’
‘ यही तो लोकतंत्र है’ वे मुस्कराईं'
‘ फिर नितीष कटारा, जैसिका लाल, प्रियदर्षिनी मट्टू, रूचिका वाले केस ? जब जन आन्दोलन हुए तब निर्णय कैसे बदले?’
‘ देखिये लोकतंत्र संख्या का खेल है, लोकतंत्र में न्याय भी संख्या बल का मुहताज होता है, संख्या जुटानी पड़ती है उसके लिये सही तरीका है मकतूल को पहले से बदनाम करो, लोग अगर आपके खिलाफ हों तो मकतूल को भी घृणा से ही देखें जैसे मारिया केस में मकतूल नीरज पर भी कास्टिंग काउच का आरोप लगा हुआ है’
‘ कमाल है तुम्हें तो राजनीति....’
‘ पब्लिसिटी मिलने पर सारे विकल्प खुले होते हैं, लोकतंत्र में हर प्रकार की पब्लिसिटी का अंत राजनीति ही होता है, फूलन भी सांसद रही थी और अमिताभ भी, अब आप बताओ टुकड़े कर पाओगे....?’
‘ मगर किसके?’
‘ अपने पड़ोसी चौधरी साब से बढ़िया विकल्प अभी तो नहीं ...’
‘ मगर वो तो मेरा दोस्त....’
‘ यही तो लोकतंत्र है...राजीव के दोस्त वी.पी.सिंह, लालू के दोस्त नीतिष कुमार , उमा भारती के भाई षिवराज चौहान, लोकतंत्र की कुंडली विषयोग पर ही टिकी होती है, जब तक दोस्तों को न निपटाओ लोकतंत्र में कामयाबी नहीं...’
‘ मगर ...’
‘ अगर मगर छोड़ो, कहीं चौधरी साब को मेरे और मिसेज वर्मा के कम्पेरिजन में मिसेज वर्मा अच्छी लगीं और वर्मा जी तीन सौ एक टुकड़़े करने को तैयार हो गये तो सैलिब्रिटी के हसबैन्ड बनने के सुख से वंचित हो जाओगे’
मैंने निश्चय किया और बाहर आ गया, चौधरी साब ‘ ओ मारिया...ओ मारिया..’ गुनगुनाते हुए जा रहे थे, आम तौर पर हर समय पड़ोसन भाभियों की सुंदरता का तुलनात्मक अध्ययन करने वाली उनकी निगाहें नीचे थीं, मैंने टोका -
‘ आइये चौधरी साब, एक एक चाय हो जाय’
‘ नहीं मैं जल्दी में हूँ आज गुप्ता जी को डिनर पर बुलाया है उसी का इंतजाम कर रहा हूँ’ उन्होंने बिना मेरी ओर देखे जवाब दिया
मैंने तुरन्त कल्पना में मिसेज गुप्ता और मिसेज चौधरी का सापेक्ष विवरण तैयार किया और अंदर की ओर मुखातिब होकर बोला - ‘ सुनती हो भागवान, कल के अखबार में गुप्ता के तीन सौ दो टुकड़े देख लेना, अब तुम सैलिब्रिटी नहीं बन पाओगी ’
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शक्ति प्रकाश
7 टिप्पणियाँ
शक्तिप्रकाश जी के व्यंग्य बहुत धारदार होते हैं। मारिया को लेकर मीडिया और रामगोपाल वर्मा नें जिस तरह की प्रतिक्रियायें दी हैं वह डराती हैं? इन्हें लाईम लाईत देने की आवश्यकता नहीं है।
जवाब देंहटाएंसोचना पडेगा कि हम कहाँ जा रहे हैं।
जवाब देंहटाएं" टी.वी. सब, कल तक अन्ना, रामदेव, लोकपाल कब्जा करके बैठे थे अखबार और टी.वी. पर , आज किस गुफा में घुसे पता ही नहीं चल रहा, आज जैसे ही मारिया आजाद हुई ऐसे लपका है कमबख्तों ने जैसे झॉसी की रानी अपनी समाधि में से निकल कर अन्ना का साथ देने आई हो, उसकी प्रेस कान्फ्रेन्स हुई पचासों पत्रकार पहुँचे, याद है ? अपनी किताब के विमोचन का सीन? एक भी पत्रकार नहीं मरा था भरपेट नाश्ते के आश्वासन के बावजूद" कहते हैं कि पढे लिखे को फारसी क्या?
जवाब देंहटाएंअपराधियों व उनके हिमायतियों को महिमामंडित कर अपनी टी.आर.पी. बढ़ाने की मीडियाई कवायदें समाज में अपराधों को बढ़ावा ही देंगी.
जवाब देंहटाएंरामगोपाल वर्मा की कोई फिल्म अब कभी नहीं देखूंगा शक्ति जी वादा रहा आपसे।
जवाब देंहटाएंRamgopal Verma ko to chhod denge Anil ji, T.V. News Paper ka kya karenge? Actually sahi yahi hai ki hamara samaj hi galat disha me ja chuka hai, hamare liye yah mahatvapurna hai ki hamne kitna kamaya, kya kamaya, lekin kis tarah kamaya is baat se samaj ko khas sarokar nahi raha. Atank vadiyon se sambandh rakhne vale Gandhi Baba ki taang pakad kar janta ki sahanubhuti le lete hain, Inam pate hain, Election ke ticket bhi, ham sab kuchh bhul jaate hain. Aap bas apni jagah sahi rahen, apne Parivar , Atmiya janon ko saaf rahne ki prerana den, Aapka itna sochna hi kafi hai. Shukriya -- Shakti
जवाब देंहटाएंअच्छा व्यंग्य...बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.