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अनुबंध प्रेम का [कविता] - विनीता शुक्ला


वह अनुबंध ही तो था जिसके तहत
द्रौपदी जुड़ गयी थी अर्जुन से
जिसके तहत उसकी निष्ठा बंट गयी
पांच टुकड़ों में, अनचाहे ही,

वह अनुबंध ही था जिसने जोड़ दिया
राम को सीता से,
जिसके चलते समा गयी
धरती के गर्भ में जनकसुता.

अनुबंध- जिसने कर दिया सुमुखी गांधारी को
अंधे धृतराष्ट्र के हवाले,
तब जन्मी
आँखों वाले अंधों की संतति.

अनुबंध- जिसने लोभ के रहते,
चढ़ा दिया
कितनी ही अबलाओं को-
दहेज़ की बलिवेदी पर

अनुबंध- जिसमे बन जाते हैं जोड़े
बिन ब्याहे ही,
जिसने देह का व्यापार किया
आत्मा के नाम पर

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कवियित्री विनीता शुक्ला साहित्यिक संस्था "अभिव्यक्ति" लखनऊ से सम्बद्ध हैं। आप मूल रूप से कहानीकार हैं । आपका कथा संकलन -"अपने अपने मरुस्थल" प्रकाशित हुआ है जिसके लिये आपको उत्तर प्रदेश  हिन्दी संस्थान के "पं. बद्रीप्रसाद शिंग्लू स्मृति सम्मान पुरस्कार प्रदान किया गया है। आपनी रचनायें अनेकों पत्रिकाओं तथा ई-पत्रिकाओं में प्रस्तुत की जाती रही हैं। 

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8 टिप्पणियाँ

  1. उच्च स्तरीय रचना...सब कुछ कह दिया है।

    जवाब देंहटाएं
  2. अनुबंध- जिसने कर दिया सुमुखी गांधारी को
    अंधे धृतराष्ट्र के हवाले,
    तब जन्मी
    आँखों वाले अंधों की संतति.

    बहुत अच्छी कविता---बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. क्या कहने अनुबंध के
    हरा हो गया मन

    जवाब देंहटाएं
  4. अनुबंध- जिसने लोभ के रहते,
    चढ़ा दिया
    कितनी ही अबलाओं को-
    दहेज़ की बलिवेदी पर
    bahut hi sunder kavita
    badhai
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  5. APKI KAVITA SE JAISE MERE HRIDYA KA BHI ANUBANDH HO GAYA HAI. APKO BADHAI
    AJAY AGYAT

    जवाब देंहटाएं
  6. अनुबंध-जसमे बन जाते ह जोड़े बन याहे ह, जसने देह का यापार कया आमा के नाम पर
    Sach ka aaina hai yeh panktiyan..
    Badhai swikar kare

    जवाब देंहटाएं
  7. विनीता शुक्ला10 फ़रवरी 2012 को 8:51 am बजे

    धन्यवाद आप सबको, रचना को पसंद करने के लिए.

    जवाब देंहटाएं

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