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मच्छर जी! [बाल कविता] - शशांक मिश्र "भारती"


मच्छर जी ओ मच्छर जी,
इतना मुझे सताओ ना..!
रोज रात को काट-काट,
मुझको बेहाल बनाओ ना।

पूछे बिना न घर में आओ,
अपने को समझाओ ना
जब आती हो नींद मुझे..,
कान में गीत सुनाओ ना।

गांव-गली, घर-बस्ती में
ऊधम बड़ा मचाते हो,
मच्छर दानी के भी अन्दर
चोरों सा घुस आते हो।
तुम तो लगते प्यारे चाचा,
मुझको इस तरह सताओ ना।
आदत छोड़ो काटने की तुम
कान में शोर मचाओ ना॥

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