बुलबुलों की मधुर पुकार नहीं
वो चमन क्या जहाँ बहार नहीं
क्या भरोसा करेगा औरों पर
जिसको खुद पे भी एतबार नहीं
जिस्म निखरे तो किस तरह निखरे
दिल में ही जब कहीं निखार नहीं
इतना भी खौफ किसलिए उससे
दुःख भरी ज़िन्दगी कटार नहीं
पर्बतों पे भी ऐसा आलम है
रोज़ बहती वहाँ बयार नहीं
आदमी वो है या कि पत्थर है
उसको बच्चों से भी दुलार नहीं
शुक्र रब का कि अब मेरे सर पर
दोस्तों का कोई उधार नहीं
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21 टिप्पणियाँ
आदमी वो है या कि पत्थर है
जवाब देंहटाएंउसको बच्चों से भी दुलार नहीं
As usual very impressive.
बहुत अच्छी ग़ज़ल---बधाई।
जवाब देंहटाएंमतले से आखिरी शेर तक नायाब ग़ज़ल| बधाई स्वीकार करें श्रीमान|
जवाब देंहटाएंजिस्म निखरे तो किस तरह निखरे
जवाब देंहटाएंदिल में ही जब कहीं निखार नहीं
ज़िन्दगी की हकीकतें बयाँ करती बेहद उम्दा गज़ल्।
कथ्य के नएपन और प्रस्तुति की सहजता के चलते प्राण शर्मा जी की यह ग़ज़ल असरदार और क़ाबिले-तारीफ़ है।
जवाब देंहटाएंजिस्म निखरे तो किस तरह निखरे
जवाब देंहटाएंदिल में ही जब कहीं निखार नहीं ..
बहुत खूब ... लाजवाब गज़ल है .. सच ही कहा है अगर इंसान अंदर से खुश होता है तो खुशी चेहरे पे भी नज़र आती है ... दार्शनिकता लिए हैं शेर इस गज़ल के ... नमन है प्राण साहब की लेखनी को ...
आदरणीय प्राण शर्मा जी की इतनी ख़ूबसूरत ग़ज़ल पढ़ने का अवसर प्रदान करने के लिए साहित्य शिल्पी का आभार !
जवाब देंहटाएंमत्ले से आख़िरी शे'र तक ( प्राणजी मक़्ते का शे'र नहीं लिखा करते … जहां तक मेरा ख़याल है । )ग़ज़ल अपने सम्मोहन में बांधे रखने वाली है …
इन अश्'आर ने तो ज़ादू ही कर दिया …
क्या भरोसा करेगा औरों पर
जिसको खुद पे भी एतबार नहीं
जिस्म निखरे तो किस तरह निखरे
दिल में ही जब कहीं निखार नहीं
शुक्र रब का कि अब मेरे सर पर
दोस्तों का कोई उधार नहीं
आशा है , उत्कृष्ट रचनाएं यहां पढ़ने को मिलती रहेंगी ।
आदरणीय प्राणजी के लिए हृदय से
शुभकामनाएं - मंगलकामनाएं हैं
-राजेन्द्र स्वर्णकार
सबसे पहले तो साहित्य शिल्पी का धन्यवाद कि इतनी अच्छी गज़ल से हमें रूबरू करवाया .
जवाब देंहटाएंप्राण साहेब की जितनी भी तारीफ किया जाए , शब्द कम पढते है . उनकी गज़ले सिर्फ गजले ही नहीं , बल्कि जिंदगी का आईना होते है . कुछ शेर तो ऐसे बन पड़े है कि क्या कह जाए ..जैसे :
क्या भरोसा करेगा औरों पर
जिसको खुद पे भी एतबार नहीं
और :
जिस्म निखरे तो किस तरह निखरे
दिल में ही जब कहीं निखार नहीं
और :
पर्बतों पे भी ऐसा आलम है
रोज़ बहती वहाँ बयार नहीं
और :
आदमी वो है या कि पत्थर है
उसको बच्चों से भी दुलार नहीं
और अंत में :
शुक्र रब का कि अब मेरे सर पर
दोस्तों का कोई उधार नहीं
ये वो शेर है , जो कि इंसानियत का एक बदला हुआ चेहरा हमारे सामने रखते है .
प्राण साहेब को और उनकी गज़ल को शत शत प्रणाम .
विजय सप्पत्ति
वाह वाह प्राण जी, आजकल ख़ूब लिख रहे हैं, ख़ुदा करे कि आपकी क़लम कभी न रुके (ज़ोरे-क़लम और ज़ियादा), दुआगो, दिव्या माथुर
जवाब देंहटाएंजिस्म निखरे तो किस तरह निखरे
जवाब देंहटाएंदिल में ही जब कहीं निखार नहीं
वाह...वाह...वाह....किस ख़ूबसूरती से आज के हालात का जिक्र किया है गुरुदेव ने...सुभान अल्लाह...प्राण साहब की ग़ज़लें ज़िन्दगी जीने का पाठ पढ़ातीं हैं...जैसे सरल वो खुद हैं वैसी ही उनकी ग़ज़लें भी हैं...इश्वर उन्हें हमेशा स्वस्थ रखे...
नीरज
जिस्म निखरे तो किस तरह निखरे
जवाब देंहटाएंदिल में ही जब कहीं निखार नहीं
वाह...वाह...वाह....किस ख़ूबसूरती से आज के हालात का जिक्र किया है गुरुदेव ने...सुभान अल्लाह...प्राण साहब की ग़ज़लें ज़िन्दगी जीने का पाठ पढ़ातीं हैं...जैसे सरल वो खुद हैं वैसी ही उनकी ग़ज़लें भी हैं...इश्वर उन्हें हमेशा स्वस्थ रखे...
नीरज
जिस्म निखरे तो किस तरह निखरे
जवाब देंहटाएंदिल में ही जब कहीं निखार नहीं
वाह...वाह...वाह....किस ख़ूबसूरती से आज के हालात का जिक्र किया है गुरुदेव ने...सुभान अल्लाह...प्राण साहब की ग़ज़लें ज़िन्दगी जीने का पाठ पढ़ातीं हैं...जैसे सरल वो खुद हैं वैसी ही उनकी ग़ज़लें भी हैं...इश्वर उन्हें हमेशा स्वस्थ रखे...
नीरज
प्राण भाई साहब,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखी है
क्या भरोसा करेगा औरों पर
जिसको खुद पे भी एतबार नहीं
और :
जिस्म निखरे तो किस तरह निखरे
दिल में ही जब कहीं निखार नहीं
क्या शे'र कहें हैं ... बधाई
बस यही कहूँगा कि:
जवाब देंहटाएंलफ़्ज़, अंदाज़ औ बयॉं ऐसा
गर मिला है तो बार-बार नहीं।
विबिन्न मनःस्थिति में ज़िन्दगी के कई रूप इस गज़ल के केन्द्र में है। बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंजिस्म निखरे तो किस तरह निखरे
जवाब देंहटाएंदिल में ही जब कहीं निखार नहीं
bahut khoob...hameshaa ki tarah ghazal-shiromani praan ji ki yah gghazal bhi dil ko chhoo gayee..
यह पंक्तियां तो जीवन प्राण हैं
जवाब देंहटाएंऔर प्राण ही तो जीवन आधार हैं
क्या भरोसा करेगा औरों पर
जिसको खुद पे भी एतबार नहीं
बिना भरोसे काहे के भरे भगवान
वहां पर तो हैं सिर्फ रोसे ही रोने।
प्राण जी की शायरी पर इतना ही कहूंगी कि उन्हें जितना पढा जाये कम है।
जवाब देंहटाएंजिस्म निखरे तो किस तरह निखरे
जवाब देंहटाएंदिल में ही जब कहीं निखार नहीं
bahut khub
aapki gazal ka ek ek sher khubsurat hai
saader
rachana
सुंदर गज़ल । हर शेर ज़िंदगी से जुड़ा हुआ ...
जवाब देंहटाएंkyaa kahen. superb !
जवाब देंहटाएंAvaneesh S Tiwari
Mumbai
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.