"बाल-शिल्पी" पर आज आपके डॉ. मो. अरशद खान अंकल आपको "फुलवारी" के अंतर्गत डा0 मोहम्मद फहीम अंकल की कविता "मेरी अलमारी" पढवा रहे हैं। तो आनंद उठाईये इस अंक का और अपनी टिप्पणी से हमें बतायें कि यह अंक आपको कैसा लगा।
- साहित्य शिल्पी
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मेरी अलमारी
बहुत बड़ी मेरी अलमारी,
चीजें उसमें रक्खीं सारी।
सबके ऊपर रक्खा बस्ता,
और बगल में है गुलदस्ता।
पास उसी के फोटो मेरा,
रसगुल्ले सा दिखता चेहरा।
नीचे गाड़ी चाबी वाली,
गुडडा रोज बजाए ताली।
रक्खी हंसने वाली गुडि़या,
खटमिटठे चूरन की पुडि़या।
रंग-बिरंगी कर्इ किताबें,
कुछ हैं बिल्कुल नर्इ किताबें।
कुछ तो मेरा ज्ञान बढ़ातीं,
कुछ तो केवल मन बहलातीं।
बैट-बाल है सबसे नीचे,
है मोबाइल गेम भी पीछे।
तुम्हें दिखा दीं चीजें सारी,
अच्छा, बंद करूं अलमारी।
1 टिप्पणियाँ
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