प्यारे बच्चों,
"बाल-शिल्पी" पर आज आपके डॉ. मो. अरशद खान अंकल आपको "फुलवारी" के अंतर्गत हरीश निगम अंकल की कविता "भइया बस्ते जी" पढवा रहे हैं। तो आनंद उठाईये इस अंक का और अपनी टिप्पणी से हमें बतायें कि यह अंक आपको कैसा लगा।
- साहित्य शिल्पी
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थोड़ा अपना वजन घटाओ
भइया बस्ते जी
हम बच्चों का साथ निभाओ
भइया बस्ते जी
गुब्बारे से फूल रहे तुम
भरी हाथी सेकुछ ही दिन में नहीं लगोगे
मेरे साथी से।
फिर क्यों ऐसा रोग लगाओ
भइया बस्ते जी
कमर हमारी टूट रही है
कांधे दुखते हैंतुमको लेकर चलते हैं कम
ज्यादा रूकते हैं
कुछ तो हम पर दया दिखाओ
भइया बस्ते जी
हरीश निगम
सतना
सतना
3 टिप्पणियाँ
थोड़ा अपना वजन घटाओ
जवाब देंहटाएंभइया बस्ते जी..बस्ते के बोझ ने बच्चो की कमर तोंड कर रख दी है.
कांधे दुखते हैं
जवाब देंहटाएंतुमको लेकर चलते हैं कम
ज्यादा रूकते हैं
कुछ तो हम पर दया दिखाओ
भइया बस्ते जी
वाह वाह वाह
वाह बच्चों के मुख से बच्चों की पीड़ा को खूब व्यक्त किया आपने
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.