पंगई दंगई, लुच्चई, नंगई।
हर जगह बढ़ गई आजकल वाक़ई॥
अब है मौसम का कोई भरोसा नहीं-
मार्च में जनवरी, जनवरी में मई॥
भा गया हैरीपाटर नई पौध को-
धूल खाती किनारे कहीं सतसई॥
जिसको देखो वो सपने में ही बक रहा-
मुंबई, मुंबई, मुंबई, मुंबई॥
राजा दसरथ अगर आज कोई बना-
नोच डालेंगी अब की उसे केकई॥
गलियों-गलियों में करके सुना एमबीए.-
लड़की-लड़के कहें ले दही, ले दही॥
प्यार साँसें भरे पहरेदारी में जो-
तो मोबाइल के जरिए मिले चंगई॥
चाहने वाले उसके बुढ़ा जाएंगे-
नई दिल्ली रहेगी नई की नई ॥
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कवि परिचय - डॉ. डंडा लखनवी
एम0 ए0, पी-एच0 डी0 (हिंदी), साहित्यिक लेखन, पठन-पाठन, सामाजिक सेवा,दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान, पर्यटन, काव्य-पाठ भारत के विभिन्न प्रांतों के आकाशवाणी केन्द्रों, दूरदर्शन केन्द्रों तथा साहित्यिक मंचों पर |
पुरस्कार/सम्मान:श्रीनारायन दीक्षित हास्य-व्यंग्य पुरस्कार,वर्ष-1976 (मुंबई), एशियालाइट साहित्य सम्मान वर्ष-1988 (लखनऊ), उ0 प्र0 हिंदी संस्थान द्वारा ‘बडे़ वही इंसान’ पुस्तक पर ‘कबीर’ पुरस्कार- वर्ष-1995 उ0प्र0 प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय द्वारा नव साक्षरोपयोगी साहित्य-लेखन पर पुरस्कार वर्ष-1997, म0प्र0 साहित्य परिषद, रतलाम द्वारा सम्मानित-वर्ष-1998 झारखंड साहित्य मंडल, पूर्णियाँ द्वारा सम्मानित-वर्ष-1998 (झारखंड़), हिंदी महासभा, बंगलौर द्वारा सम्मानित वर्ष-1999 (कर्नाटक), अमेरिकन बायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट द्वारा ‘फाइव थाउजेंड परसानालिटीज आफ दी वर्ड’ के रूप में उल्लेख,वर्ष-1998, शारदा सम्मान:अ.भा.मंचीय कविपीठ, उ0प्र0 -2008 लखनऊ)
प्रसारण- कार्य स्वतंत्रता की स्वर्णजयंती पर डी-डी-1 से राष्ट्रीयगीत की संगीतबद्व प्रस्तुति-1997 संपादन कार्य ‘साहित्य सेतु’ त्रैमासिकी, ‘मेरुदंड’ एवं ‘उपलब्धि’ वार्षिकी
संप्रति- लेखन एवं स्वतंत्र पत्रकारिता |
2 टिप्पणियाँ
धारदार व्यंग्य से भरीपूरी पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंराजा दसरथ अगर आज कोई बना-
नोच डालेंगी अब की उसे केकई॥
खूब डंडा चला है लखनवी जी का। सभी एक से बढ कर एक पद हैं।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.