छः 'बरवै' छंद
बहनें लेकर आयीं, पूजन थाल.
रोली-अक्षत सोहै, भाई भाल..
सजी कलाई बाँधी, राखी हाथ.
सदा रहे ओ बहना, तेरा साथ..
मेरा भैया चंदा, जैसा आज.
बहना का चलता है, घर में राज..
तीनों के मुखमंडल, पर मुस्कान.
प्यारा भैया बहनों, की है जान..
मिला अभी जो बहना, का आशीष.
अंबरीश झुक जाता, अपना शीश..
बहना पर न्यौछावर अपने प्राण.
सदा मिले बहना को, यह सम्मान..
कुण्डलिया छंद :
कुण्डलिया दिल से रची, प्रभुजी यही यथार्थ,सब जन मिल लें शपथ, बहनों के रक्षार्थ|बहनों के रक्षार्थ, खड़े हों हम मिल सारे,
कन्या को सम्मान. सभी दें द्वारे-द्वारे;
अम्बरीष अब रोक, भ्रूण हत्या सी बलि, या!
अभी शर्म से डूब, यही कहती कुण्डलिया ||
2 टिप्पणियाँ
छंदबद्ध कवितायें पढना अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएंअच्छे छन्द...बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.