माना कि तुम्हारे तरकश में हैं
पैनी सच्चाइयों के तीर
और तुम आमादा हो
वार करने पर
ताकि दे सको
हर विफलता को भूल का नाम;
कठघरे में खड़ा कर सको
बिखरते वज़ूद की कराहटों को
और लानत भेज सको -
सहमी हुई सम्वेदनाओं को
लेकिन कभी सोचा;
क़ि ऐसा करने से -
पुतेगी कालिख;
तुम्हारे भी नाम पर
क्योंकि हमारे तार
उलझ गए थे आपस में,
कहीं न कहीं -
जाने अनजाने!
पैनी सच्चाइयों के तीर
और तुम आमादा हो
वार करने पर
ताकि दे सको
हर विफलता को भूल का नाम;
कठघरे में खड़ा कर सको
बिखरते वज़ूद की कराहटों को
और लानत भेज सको -
सहमी हुई सम्वेदनाओं को
लेकिन कभी सोचा;
क़ि ऐसा करने से -
पुतेगी कालिख;
तुम्हारे भी नाम पर
क्योंकि हमारे तार
उलझ गए थे आपस में,
कहीं न कहीं -
जाने अनजाने!
5 टिप्पणियाँ
विनीता जी
जवाब देंहटाएंकविता बहुत अच्छी है
कुछ कुछ धुमिल जी की तरह तीखापन
और खुश्बु है ! गहराई की तरफ जाने का प्रयास ....
धन्यवाद .. आपका जय बस्तरिया
hi vinita, i want to know how can i publish my poem here? juoti 9999815751
जवाब देंहटाएंi m not vinita,,why on my email-adress these comments are coming..plz correct email-address..jyotipatent@gmail.com merA ID HAI...I M JYOTI CHAUHAN
जवाब देंहटाएंज्योति जी कविता की सराहना के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंजय जी कविता को पसंद करने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.