याद की बज़्म सजी दिल में सितारों की तरह
फिर से महसूस ख़लिश दिल ने की ख़ारो की तरह
दूर वो हो गया अब हम से दरारों की तरह
उससे मुश्किल है मुलाकात किनारों की तरह
बेरुख़ी उसकी है, गोया कोई पतझड़ की हवा
मेरे अरमान हैं अब उड़ते गुब्बारों की तरह
आइना सामने था और मुक़ाबिल मैं थी
अक्स था जैसे बियाबानों के नज़ारों की तरह
कितना नटखट है मुक़द्दर ये , है कितना चंचल
खेलता आँख मिचौली है वो तारों की तरह
जाने क्या बात है क्यों रूठ गया है मौसम
साथ हंसता था मेरे वो भी बहारों की तरह
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8 टिप्पणियाँ
नागरानी जी की हमेशा की तरह एक और सुन्दर ग़ज़ल -
जवाब देंहटाएंजाने क्या बात है क्यों रूठ गया है मौसम
साथ हंसता था मेरे वो भी बहारों की तरह
जाने क्या बात है क्यों रूठ गया है मौसम
जवाब देंहटाएंसाथ हंसता था मेरे वो भी बहारों की तरह
akharee pangatee dil ko chhu lene valee hai...
Achchhee gazal ke liye Devi Nagrani ko
जवाब देंहटाएंbadhaaee .
दूर वो हो गया अब हम से दरारों की तरह
जवाब देंहटाएंउससे मुश्किल है मुलाकात किनारों की तरह
मन को छू गयी बात।
नागरानी जी
जवाब देंहटाएंअच्छी गज़ल के लिये बधाई
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
door ab ho gaya vo hamase dararon ki tarah
जवाब देंहटाएंus se mushkil hai mulakat kinaron ki tarah.
ek achchhi ghazal ka bahut achchha sher. bahut bahut badhai ho Devi Nagrani ji
अच्छी गज़ल..बधाई
जवाब देंहटाएंAap sabhi ko meri dili dhanywaad shubhkamanaon ke saath
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.