[प्रसंग - अन्ना को जब तिहाड ले जाया गया। महत्वपूर्ण यह कि "सवाल" अतंत प्रासंगिक है]
भारत की आजादी के इतिहास में आजका दिन अर्थात १६ अगस्त,२०११ को ’काले दिवस’ के रूप में याद किया जाएगा. भ्रष्टाचार के विरुद्ध अहिंसक और शांतिपूर्ण रूप से अनशन करने जा रहे अण्णा हजारे और उनके साथियों श्री अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को सुबह ७.१६ बजे दिल्ली के मयूरविहार स्थित सुप्रीम एन्क्लेव से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. यही नहीं वहां उपस्थित अण्णा के सैकड़ों समर्थकों को भी गिरफ्तार किया गया. अण्णा और उनके साथियों को अलीपुर स्थित पुलिस मेस ले जाया गया और शेष समर्थकों को छत्रसाल स्टेडियम जहां जे.पी.पार्क से रात गिरफ्तार किए गये पचास से अधिक लोगों को पहले ही 12X 18 छोटे से कमरे में रखा गया था. इतने छोटे से कमरे में कितने ही लोगों ने रात खड़े-खड़े बितायी. महिलाओं और पुरुषों को एक साथ रखा गया. कहा जा रहा है कि एक समर्थक की पुलिस ने पिटाई भी की और बाकी को बार-बार धमकाया भी.
वरिष्ठ साहित्यकार बलराम अग्रवाल से तय हुआ था कि हम दोनों ही जे.पी.पार्क पहुंचकर अण्णा के समर्थन में अनशन में शामिल होगें. लेकिन यह नौबत नहीं आयी. हम सभी ५ बजे सुबह से ही TV पर ताजा घटनाक्रम की जानकारी ले रहे थे और अनुमान कर रहे थे कि अण्णा को राजघाट पहुंचने पर गिरफ्तार किया जाएगा. क्योंकि घबड़ाई सरकार ने वहां भी धारा १४४ लगा दी थी. इसके उल्लघंन के आरोप में उन्हें वहां गिरफ्तार किए जाने की संभावना थी. लेकिन अण्णा और उनके साथियों को राजघाट जाने के लिए लिफ्ट से उतरते ही उनके साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया.
बलराम अग्रवाल ने यह समाचार पाते ही मयूरविहार के लिए कूच कर दिया और ७.४५ बजे वहां अपनी गिरफ्तारी दे दी. उन्हें अन्य लोगों के साथ छत्रसाल स्टेडियम ले जाया गया. मैं घर से ८ बजे निकला गिरफ्तारी होनी है यह तय मानकर. रास्ते में बलराम अग्रवाल का फोन आया और उन्होंने केवल इतना ही कहा कि ’अण्णा ने गिरफ्तारी दे दी है’. उस समय मैं ड्राइव कर रहा था और उसके तुरंत बाद जबर्दस्त बारिश और जाम में फंस गया. बाद में जब बलराम अग्रवाल से उनके कार्यक्रम के बारे में जानने के लिए उन्हें मोबाइल पर संपर्क किया तो हंसकर उन्होंने कहा- "मैं गिरफ्तार होकर इस समय छत्रसाल स्टेडियम’ में हूं.
"मैं भी आ रहा हूं." मेरे कहने पर बलराम अग्रवाल ने कहा कि ’’आप बाहर रहें. बाहर रहकर भी बहुत करना आवश्यक होगा.’’
बहुत गर्व के साथ आपको यह सूचित कर रहा हूं कि मेरे अनुसार बलराम अग्रवाल शायद पहले हिन्दी साहित्यकार हैं जिन्होंने अण्णा के समर्थन में गिरफ्तारी दी है. आश्चर्यजनक बात यह है कि हिन्दी लेखकों ने इस विषय में चुप्पी साध ली है. उन पत्रिकाओं के सम्प्पदकों की चुप्पी समझ में आती है, जिन्हे दिल्ली सरकार से प्रतिवर्ष उनकी पत्रिका के लिए दो लाख का अनुदान (विज्ञापन के रूप में) मिल रहा है, शेष क्यों चुप है---समझ नहीं आ रहा. लोग इंटरनेट के माध्यम से या जो भी संसाधन हैं उनके पास भ्र्ष्टाचार के विरुद्ध इस मुहिम को अपना समर्थन दे रहे हैं, लेकिन हिन्दी साहित्यकारों की मृत्यु-सी चुप्पी चौंकाने वाली है.
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2 टिप्पणियाँ
आपको हिन्दी के साहित्यकारों से अपेक्षा क्यो है। सब अपनी राजनीतिक पार्ती के गुलाब है। मैं रोज पहुँच रहा हूँ रामलीला मैदान में। मैं अन्ना के साथ हूँ।
जवाब देंहटाएंbahut khoob. sach yahi hai me bhi facebook par poem [anna] de rahi hoon. sabke liye ladaee hai sabko kisi n kisi tarah virodh karna chahiye
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.