जब गरज - गरज घन बरसेंगे
और देख घटा की अलक श्यामली
विरही नयना तरसेंगे
क्या याद करोगे तुम मुझको ?
जब लहरें चन्दा चूमेंगी
और नभ की गलियों में चंचल
कोई पवन बाँवरी झूमेगी
जब पुरवा आकर छेड़ेगी
और भीनी-भीनी यादों की
कोई खुशबू तन -मन घेरेगी
क्या याद करोगे तुम मुझको ?
जब पर्वत से कोई नदी ढले
और दूर किनारे सागर के
नयनों में कोई दीप जले
जब ओस कणों की बूंद झरे
और कुँकुम रोली अँजुरी भर
प्राची में कोई माँग भरे
क्या याद करोगे तुम मुझको?
जब महुआ अँगना डोलेगा
और साँझ के पैरों में बंध कर
कोई घुँघरू छन - छन बोलेगा
जब रात चाँदनी घोलेगी
और रजनी गंधा झुकी- झुकी
घूँघट अपना खोलेगी
क्या याद करोगे तुम मुझको ?
8 टिप्पणियाँ
bahut sundar !
जवाब देंहटाएंAvaneesh
जब पुरवा आकर छेड़ेगी
जवाब देंहटाएंऔर भीनी-भीनी यादों की
कोई खुशबू तन -मन घेरेगी
क्या याद करोगे तुम मुझको ?
बड़ा ही मीठा गीत है।
जब रात चाँदनी घोलेगी
जवाब देंहटाएंऔर रजनी गंधा झुकी- झुकी
घूँघट अपना खोलेगी
क्या याद करोगे तुम मुझको ?
sunder bhav prem ras ki sunder kavita
rachana
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंshashi ji aapki har rachna bahut madhur aur rash bahri hoti hai.prkriti aur prem ko bahut sunderta se mithai ki bhanti parosati hain aap. man gad gad ho jata hai. bahut hi meetha geet hai badhai,
जवाब देंहटाएंsaadar,
amita kaundal
इस रचना को सराहने के लिए आप सब का हार्दिक धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
शशी जी मधुर गी्त सही मायने मै दिल प्रसन्न हो गया.बधाई..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका शरद जी ,
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.