
६१ लघुकथाओं वाली 'नई रोशनी' संजय की पहली कृति है। युवा संजय जनागल की इस कृति का नाम 'नई रोशनी' मुझे कई मायनो में सार्थक लगा। एक तो संजय उम्र के हिसाब से साहित्य में नई रोशनी भी साबित हो सकते हैं, दूसरा ये इनकी पहली कृति है और तीसरा परम्परानुसार प्रतिनिधी रचना इस में नई रोशनी के नाम से ही है। संजय की इस नई रोशनी का आलोक बडा विस्तृत और व्यापक है। इन लघुकथाओं में जीवन का शायद ही कोर्इ्र क्षेत्र छूटा हो। इन लघुकथाओं में मानवीय सरोकारो को शिद्दत से व्यक्त किया गया है। एक रचनाकार अपने आसपास के वातावरण से निरपेक्ष नहीं रह सकता, इस संग्रह की लघुकथाओं को पढ कर यह विश्वास और पुख्ता हो जाता है। संजय समाज में उत्पन हो रही विसंगतियों से आहत होते हैं। राजनीति में हो रहे अवमूल्यन पर चिन्तित होते हैं। सरकारी तंत्र में पनप रही अकर्मण्यता पर क्रुद्ध होते हैं। अव्यवस्थाओं, अव्यवहारिकता और दोगलेपन से खिन्न होते हैं पर संजय जीवन से निराश नहीं होते। आशावाद का दामन थामे रखते हैं।
लघुकथा लेखन एक जोखिम भरा काम है। लघुकथा मारक होनी चाहिये, आकारगत रूप में लघु होनी चाहिये, साथ ही कथानक भी होना चाहिये। संजय की लघुकथाओं में ये विशेषताएं सहजता से मिलती हैं। इस संग्रह की लघुकथाओं में जीवन के सत्यों को गहरी संवेदना के साथ व्यक्त किया गया है। कुछ विद्वान लघुकथा को कथ्य, भाषा, शिल्प और शैली की दृष्टि से अधकचरी रचना लिखने वालों की बैसाखी मानते हैं। संजय के इस संग्रह की कुछ लघुकथाएं इस मिथक को तोड़ती नजर आती हैं।
इस संग्रह की लघुकथाओं का विस्तृत विवेचन करने पर ज्ञात होता है कि संजय ने इस संग्रह की इमेज, मॉर्डन महात्मा, मौत का जश्न, बन्दोबस्त, अपना-अपना समाज, खिलौना, पैसे की महिमा, छोटा परिवार, तीर्थ यात्रा तथा नाम लघुकथाओं में समाजिक बुराइयों और समाज में मूल्यों के अवमूल्यन के कारण छिन्न भिन्न हो रहे सामाजिक ताने-बाने को अपना कथानक बनाया है।
इस लघुकथा संग्रह की सच्चा मित्र, समय समय का अन्तर, मजबूरी, और तलाश लघुकथाओं में संजय शिक्षा और शिक्षकों की खबर लेते नजर आते हैं। संजय साहित्य और साहित्यकारों की खबर लेने में भी नहीं चूकते, वास्तविकता और अपना लगे लघुकथाएं इसका उदाहरण हैं। इन्होंने फाईल खुल गई तथा तिकडमगाथा लघुकथाओं में पत्रकारिता के क्षेत्र में आ रही गिरावट को सशक्त ढंग से रखा है।
संजय तंत्र और व्यवस्था में व्याप्त अकर्मण्यता, झूठे रौब जैसी विदु्रपताओं पर दम तोडता सच, रौब, ट्रान्सफर तथा चुनाव डयूटी लघुकथाओं के माध्यम से नई रोशनी डालते हैं।
अपने इस संग्रह में धर्म और राजनीति, विज्ञापन, समय की कमी, कहीं खुशी कहीं गम, बाबा साहब के नाम पर, सच्ची सेवा, पैंतरा एक, मैं नहीं, सराहनीय बजट, नई रोशनी जैसी लघुकथाओं में राजनीति में आ रही गिरावट और राजनेताओं की पैंतरेबाजी को बेबाकी से अपना कथानक बनाया है।
कुछ रचनाओं में कथ्य सघनता से पीड़ा की छटपटाहट को व्यक्त करता है। जीवन के यथार्थ को इस संग्रह की रचनाएं पैनेपन से व्यक्त करती है। पर यहाँ ये भी कहना होगा की संजय आशावादी बनकर यूटोपियाई कल्पना कर एक आदर्श स्थिति प्रस्तुत करता है। संग्रह की नई रोशनी लघुकथा में ऐसा ही आदर्शवाद दिखलाई पड ता है। इस संग्रह की कुछ रचनाएं जैसे खिलौना, इमेज, नाम, अपना अपना समाज, विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
शिल्प की दृष्टि से देखें तो लघुकथा में सीधे केन्द्रिय भाव को तीक्ष्णता से व्यक्त किया जाता है। इसलिये इस विधा में शब्दों का भावानुरूप चयन और वाक्य विन्यास सटीक होना आवश्यक हो जाता है। संजय इसमें कुछ हद तक सफल रहें हैं। संजय की इस पुस्तक में नाम सबसे छोटी तथा तीर्थयात्रा सबसे बडी लघुकथा है। लघुकथा आकार में छोटी होनी चाहिये इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती पर उसे शब्द सीमा में भी नहीं बांधा जा सकता है। यहाँ लघुकथाओं का आकारगत अन्तर इनके सम्प्रेषण पर बाधक नहीं बनता है। संजय की इन दोनो लधुकथाओं में कथ्य की कसावट और तीव्रता बराबर बनी रहती है। यानि संजय आकार के मामले में छूट लेते हैं पर लघुकथा को लघुकथा बनाए रखने में सफल रहते हैं। संजय बिम्ब और प्रतीकों का बेहतर प्रयोग करते हैं, अपना अपना समाज, लघुकथा इसका उदाहरण है।
मैं ढेरों शुभकामनाओं के साथ संजय के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।
2 टिप्पणियाँ
sarthak pustak charcha badhai lekhak evam prastut karta ko..
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.