शब्द कोशकार ने अपना कार्य समाप्त होने पर चैन की साँस ली और कमर सीधी करने के लिये लेटा ही था कि काम करने की मेज पर कुछ हलचल सुनाई दी. वह मन मारकर उठा, देखा मेज पर शब्द समूहों में से कुछ शब्द बाहर आ गये थे. उसने पढ़ा - वे शब्द थे प्रजातंत्र, गणतंत्र, जनतंत्र और लोकतंत्र .
हैरान होते हुए कोशकार ने पूछा- ' अभी-अभी तो मैंने तुम सबको सही स्थान पर रखा था, तुम बाहर क्यों आ गये?'
'इसलिए कि तुमने हमारे जो अर्थ लिखे हैं वे सरासर ग़लत लगते हैं.' एक स्वर से सबने कहा.
'एक-एक कर बोलो तो कुछ समझ सकूँ.' कोशकार ने कहा.
'प्रजातंत्र प्रजा का, प्रजा के लिये, प्रजा के द्वारा नहीं, नेताओं का, नेताओं के लिये, नेताओं के द्वारा स्थापित शासन तंत्र हो गया है' - प्रजातंत्र बोला.
गणतंत्र ने अपनी आपत्ति बतायी- 'गणतंत्र का आशय उस व्यवस्था से है जिसमें गण द्वारा अपनी रक्षा के लिये प्रशासन को दी गयी गन का प्रयोग कर प्रशासन गण का दमन जन प्रतिनिधियों की सहमति से करते हों.'
'जनतंत्र वह प्रणाली है जिसमें जनमत की अवहेलना करनेवाले जनप्रतिनिधि और जनगण की सेवा के लिये नियुक्त जनसेवक मिलकर जनगण की छाती पर दाल दलना अपना संविधान सम्मत अधिकार मानते हैं.' - जनतंत्र ने कहा.
लोकतंत्र ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बताया- 'लोकतंत्र में लोक तो क्या लोकनायक की भी उपेक्षा होती है. दुनिया के दो सबसे बड़ा लोकतंत्रों में से एक अपने हित की नीतियाँ बलात अन्य देशों पर थोपता है तो दूसरे की संसद में राजनैतिक दल शत्रु देश की तुलना में अन्य दल को अधिक नुकसानदायक मानकर आचरण करते हैं.' - लोकतंत्र की राय सुनकर कोशकार स्तब्ध रह गया.
रचनाकार परिचय:-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।
आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।
आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि। वर्तमान में आप अनुविभागीय अधिकारी, मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग के रूप में कार्यरत हैं।
हैरान होते हुए कोशकार ने पूछा- ' अभी-अभी तो मैंने तुम सबको सही स्थान पर रखा था, तुम बाहर क्यों आ गये?'
'इसलिए कि तुमने हमारे जो अर्थ लिखे हैं वे सरासर ग़लत लगते हैं.' एक स्वर से सबने कहा.
'एक-एक कर बोलो तो कुछ समझ सकूँ.' कोशकार ने कहा.
'प्रजातंत्र प्रजा का, प्रजा के लिये, प्रजा के द्वारा नहीं, नेताओं का, नेताओं के लिये, नेताओं के द्वारा स्थापित शासन तंत्र हो गया है' - प्रजातंत्र बोला.
गणतंत्र ने अपनी आपत्ति बतायी- 'गणतंत्र का आशय उस व्यवस्था से है जिसमें गण द्वारा अपनी रक्षा के लिये प्रशासन को दी गयी गन का प्रयोग कर प्रशासन गण का दमन जन प्रतिनिधियों की सहमति से करते हों.'
'जनतंत्र वह प्रणाली है जिसमें जनमत की अवहेलना करनेवाले जनप्रतिनिधि और जनगण की सेवा के लिये नियुक्त जनसेवक मिलकर जनगण की छाती पर दाल दलना अपना संविधान सम्मत अधिकार मानते हैं.' - जनतंत्र ने कहा.
लोकतंत्र ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बताया- 'लोकतंत्र में लोक तो क्या लोकनायक की भी उपेक्षा होती है. दुनिया के दो सबसे बड़ा लोकतंत्रों में से एक अपने हित की नीतियाँ बलात अन्य देशों पर थोपता है तो दूसरे की संसद में राजनैतिक दल शत्रु देश की तुलना में अन्य दल को अधिक नुकसानदायक मानकर आचरण करते हैं.' - लोकतंत्र की राय सुनकर कोशकार स्तब्ध रह गया.
आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।
आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि। वर्तमान में आप अनुविभागीय अधिकारी, मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग के रूप में कार्यरत हैं।
3 टिप्पणियाँ
जय जय जय हो लोकतंत्र की
जवाब देंहटाएंजय जय जय गणतंत्र की
नेताओं का पेट भर रहा
ऐसे सुंदर मंत्र की|प्रभुदयाल
sundar vyang .
जवाब देंहटाएंAvaneesh
सच है...
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.