वह तेरी हंसी थी, वह कैसा समां था
मुअत्तर तेरी ज़ुल्फ़ से गुलसितां था,
हिनाई सफ़र था, चमन नग़मा ज़न था
मेरी जिंदगी में तू रूह ऐ रवां था;
ना जाने है क्यों, मुझ से तू बदगुमाँ अब
ये कैसा समां है वो कैसा समां था;
न था दरम्यान फासला कोई अपने
नहीं कुछ निहां जो भी था वह अयाँ था
सताती है अब मुझ को वह याद ए माजी
हसीन तू भी था और मैं भी जवान था
अब आया है करने को अहवाल पुरसी
अब इतने दिनों यह बता तू कहाँ था .
हयात आज है जिंदगी तल्ख़ अपनी
वह दिन याद हैं जब मेरी जान ए जान था
2 टिप्पणियाँ
वाह !हयात जी, एहसासों से सजी रचना!
जवाब देंहटाएंहयात आज है जिंदगी तल्ख़ अपनी
वह दिन याद हैं जब मेरी जान ए जान था..आपकी एक और बेहतरीन रचना! "स्मृति कब मृत होती हैं रहे भले न देह!आपके अनमोल लेखन को नमन!चेतन रामकिशन.
.. आज इस ग़ज़ल को पढ़ने का मज़ा कुछ और ही है Sir...हरबार.. बहुत प्यार से सवारां है आपने इसे.. और आपकी इस खूबसूरत पेशकश के साथ जो ''राही मासूम रज़ा'' साहब के भी अशहार आपने जोड़े है.. उसका अलग से शुक्रिया!!
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.