बेटा गया पिसाने आटा
कब वापस आये
किसी धूर्त की गोली से
न स्वर्ग सिधर जाये|
उसकी महनत के ईंधन से
चूल्हा जलता है
उसके तन मन संदोहन से
ही घर चलता है
वह न हो तो घर
भूतों का डेरा हो जाता
अंधियारे में घर का
कोना कोना खो जाता
है आशीश उसे दुनियां की
नज़र न कग जाये|
रामायण में खंजर है
बंदूक कुरानों में
कोतवाल भी नहीं सुरक्षित
हैं अब थानों में
समाचार में दिल दहलाने
वाली बातें हैं
पता नहीं कितनों के
अंतिम दिन या रातें हैं
पता नहीं कब शीशा टूटे
और बिखर जाये|
रोज धमाकों के उत्सव
शहरों शहरों होते
अपने प्रिय जनों को जाने
कौन कौन खोते
कहीं किसी का पैर
किसी का धड़ दिख जाताहै
बम फटने से कितनों का ही
सिर फट जाता है
घर से कदम निकाला बाहर
और अखर जाये|
4 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंNice Poem . P. N. Shrivastava Sagar
जवाब देंहटाएंरोज धमाकों के उत्सव
जवाब देंहटाएंशहरों शहरों होते
अपने प्रिय जनों को जाने
कौन कौन खोते
कहीं किसी का पैर
किसी का धड़ दिख जाताहै
बम फटने से कितनों का ही
सिर फट जाता है
घर से कदम निकाला बाहर
और अखर जाये| Acchii abhivkti Goverdhan Yadav chhindwara
Beautiful Poem....................Boooos
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.