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बापू तुम फिर से आओ [कविता] - डॉ. अमिता कौंड़ल


बापू तुम फिर से आओ

अहिंसा के पुजारी
कहलाये तुम
और सत्य को
बना लाठी बापू,
स्वतन्त्रता संग्राम
चलाया था तुमने
पर जानते हो बापू,
उसी स्वतन्त्र भारत में
आज,
सत्यनिष्ठा पराधीन हुई
और भ्रष्टाचार आज़ाद है
पथ पथ पर हिंसा है
बापू,
आगजनी उत्पात है
इक लंगोटी
और लाठी में
तुम कितने संतुष्ट थे
बापू,
पर अथाह सम्पति
पाने पर भी मानव
कितना लोभी है
आज,
दो अक्टूबर को
तुम्हे याद कर,
राष्ट्र पिता तुम्हे
मान कर,
हम केवल धर्म निभाते हैं
पर हर कदम पे
अवहेलना कर
तुम्हारी शिक्षाओं की,
हम चोट तुम्हे पहुंचाते हैं

बापू तुम फिर से आओ
मानव को सत्य, अहिंसा,
देशप्रेम का पाठ पढाने,
विश्व में व्यापत उग्रवाद को
जड़ से मिटाने,
बापू तुम फिर से आओl

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3 टिप्पणियाँ

  1. मौजूदा हालात के लिए बिल्कुल सार्थक कविता है...बधाई|

    जवाब देंहटाएं
  2. बापू तुम फिर से आओ
    मानव को सत्य, अहिंसा,
    देशप्रेम का पाठ पढाने,
    विश्व में व्यापत उग्रवाद को
    जड़ से मिटाने,
    बापू तुम फिर से आओl
    kash aesa hojaye amita ji samy ke anukul uttam kavita
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  3. आप सबको कविता पसंद आयी इसके लिए धन्यवाद
    सादर,
    अमिता कौंडल

    जवाब देंहटाएं

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