
सड़क किनारे लाचार बचपन
आँखों में लिए लाखों सवाल
घूरता रहा मेरे मुन्ने को
जो लिए था हाथ आइस क्रीम
और पहने था सुंदर वस्त्र
जो पकडे था माँ का हाथ
और बैठ गया था कार में
अब तक उन सवालिया आँखों
के जवाव न मिल पाए मुझे
जब भी गुजरती हूँ सड़क से
मिला नहीं पाती में नजरें
क्योंकि कुछ कर जो नहीं पाती
उन सवालिया आँखों के लिए
वो आँखे अब भी घूरती हैं
4 टिप्पणियाँ
वो आँखें हमेशा घूरती ही रहेगी॥ काश हम कुछ करपाते तो सड़क यह किनारे भी एक खूबसूरत मंज़र में बदला जाते....बहुत अच्छी सार्थक प्रस्तुति समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंलाचार बचपन भाव्पूर्ण कविता है । जिस बचपन को फूल की तरह खिलना चाहिए वह अभाव्ग्रस्त जीवन जीन एको बाध्य है।
जवाब देंहटाएंसचमुच उन सवालिया आँखों का सामना करना कठिन है क्योंकि सब कुछ समझ कर भी हम कुछ नहीं कर सकते...इस मजबूरी को आपने बहुत अच्छी तरह से लिखा है|
जवाब देंहटाएंपल्लवी जी, रामेश्वर भाईसाहब व् रीता जी आपको कविता पसंद आयी आप सभी के सराहनीय स्नेह्शब्दों के लिए हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसादर,
अमिता कौंडल
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.