
अश्क बनकर बह गए जिन्दगी के अरमां
चाहतें अधूरी रह गई इसी दरमियां
खाबों का घरौन्दा टूट कर बिखर गया
हमसे हमारा साया ही जैसे रूठ गया
फूल भी जैसे अब न बिखेर पाये खुशबू
कांटे ही कांटे हैं जीवन में जैसे हरसू
दिल जैसे रो रहा पर होंठ मुस्कराते
गम-ए-जिन्दगी का ज़हर पीते जाते
इस चमन से आज ये ‘सुमन’ है पूछे
क्या पाया है उसने जिन्दगी से मिल के
क्या पाया है उसने जिन्दगी से मिल के............
सुमन ‘मीत’
4 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता..बधाई
जवाब देंहटाएंkya bat h
जवाब देंहटाएंक्या पाया है उसने जिन्दगी से मिल के............
जवाब देंहटाएंachchhi kavita badhai
ना रिश्तों की अहमियत है
जवाब देंहटाएंना भावनाओं पे गौर है,
एक अज़ब की बेकसी है
एक गज़ब का दौर है।
क्या कहूँ, किससे कहूँ
सभी ने तो है यहाँ
अपने ज़ख्मों के सौदा किये.
एक तुम्हीं नहीं हो 'विजय'
दर्द के सलीब पे टंगे हुए,
इस ज़माने ने हजारों
मसीहा हैं पैदा किये .
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.