जनवरी 5, गुरुवार, 2012,संयोग साहित्य द्वारा आयोजित “एक शाम डॉ॰ श्याम सखा ‘श्याम’ के नाम” का आयोजन किया जिसमें रोहतक (हरियाणा) से पधारे हरियाणा साहित्य अकादमी के निर्देशक डॉ॰ श्याम सखा ‘श्याम’ जी, का सन्मान हुआ। गोष्टी श्रीमती शैलजा व श्री नरहरी जी के निवास स्थान पर छंद शास्त्र के पिंगलाचार्य श्री आर. पी. शर्मा जी की अध्यक्षता में संपन्न हुई। इस गोष्टी के संयोजक संयोग साहित्य के प्रधान संपादक श्री मुरलीधर पांडेय की देख-रेख में शाम 5.30 बजे से रात 10.00 तक चलती रही। संचालक का भार वरिष्ठ विधवान साहित्यकार डॉ॰ बनमाली चतुर्वेदी जी ने सशक्तता से संभाला। महफिल का आगाज नीरज कुमार जी ने अपनी मधुर आवाज़ में सरस्वती वंदना से किया और फिर श्री श्याम सखा ‘श्याम’ जी की रचनाओं की भीनी भीनी बारिश में श्रोता भीगते रहे, सुनते रहे, अनोखे मुक्तक, गीत, ग़ज़ल। श्याम सखा जी ने बेहद अनूठे शेरों को भावविभोर होकर सुनाया और महफिल में वाह वाह लूटी। आप भी सुनें उनकी इस उड़ान की रफ़्तारी ...
उनकी बातें ही झिडिकियों की तरह/ जख्म मेरे खुले खिड़कियों की तरह
घूमना है बुरा तितिलियों की तरह /घर में बैठा करो लड़कियों की तरह
हेमाचन्दानी, खन्ना मुज़फ्फ़रपुरी, मुरलीधर पांडेय, श्री आर. पी. शर्मा, डॉ॰ श्याम सखा ‘श्याम’ , डॉ॰ बनमाली चतुर्वेदी, शैलजा नरहरी, देवी नागरानी, नेहा वैध, श्री मा.ना. नरहरी, डॉ॰ संतोष श्रीवास्तव, सुमीता केशवा
संयोग साहित्य के संपादक श्री मुरलीधर पाण्डेय ने तरनुम में एक गीत गाया.....
कोई पूछता है, कोई ढूँढता है
कहाँ ज़िंदगी है, किधर ज़िंदगी है
श्री आर. पी. शर्मा जी के सुपुत्र रमाकांत शर्मा ने अपने कहानी संग्रह नया लिहाफ से एक कहानी ‘आखिर वे आ गए’ पढ़ी जिसका मर्मस्पर्शी मंज़र सुनने वाले श्रोताओं को भावविभोर कर गया । अब बारी आई श्री मा.ना. नरहरी जी की जिन्होने अपनी ग़ज़लों से लोन का मन मोह लिया।
रौशन चरागों को दुपते से बुझाया न करो
फूलों भरी शाखों को यूं हिलाया न करो
कैसे कह दूँ तू मेरा है / गैरों से तेरा रिश्ता है। और सिसिलेवार अनेक शेर भी पेश किए ...
श्रीमती शैलजा नरहरी ने मंत्र मुग्ध करती हुई शैली और आवाज़ में अपनी दो ग़ज़ल और कुछ मुक्तक पेश किए.....
अपने भीतर उतार के देख लिया
पारा पारा बिखरके देख लिए
देवी नागरानी ने चंद दोहे और एक ग़ज़ल के साथ अपना कलाम पूरा किया
अनबुझी प्यास रूह की है ग़ज़ल
खुश्क होंटों की तिशनगी है ग़ज़ल
अब नरहरी जी संचालक महोदय श्री बनमाली जी को आवाज़ दे रहे हैं, तो आइये उन्हें सुनते हैं...
भूखे से सौ गुने खिलाने वाले भूखे
प्यासों से सौ गुने यहाँ के पनघट प्यासे हैं
वाह वाह ! जाने अनजाने सभी के मुख से वाह वाह फिज़ाओं में फैल गयी॰ अब मंच पर अपना रंग जमाने आए है खन्ना मुज़फ्फ़रपुरी, सुनिए...
बाग-बगीचे, हसना गाना
फूल या तितली सब अफ़साना
सशक्त कहनीकार, उपन्यासकार डॉ॰ संतोष श्रीवास्तव ने एक मधुर अनुपम गीत सुनाया....
तेरे इश्क़ ने किया है असर हौले-हौले
सुमीता केशवा ने इस गीत पर खूब दाद पायी ......
ऐसी कोई बात न हो जिसमें तेरा साथ न हो/
उभरती हुई नई रचनकर, पर पुरानी कलाकार हेमाचन्दानी ने सुरमई ग़ज़ल से एक मदहोशी वातावरण में घोल दी ...
लम्हा दर लम्हा यूं रिश्तों की दरकते देखा
चंद चाँदी के झरोखों में सिसकते देखा
नेहा वैध ने अपने मधुर कंठ में एक गीत पेश किया.....
धार कुछ और धारे छोड़ने होंगे
गीत सुंदर सुरों में पिरोकर पेश किया।
कवियित्रि पूजा दीक्षित ने उस दौर और इस दौर के बचपन के बीच की रेखाएँ लांघती रही अंत की ओए आते आते श्री आर. पी. शर्मा जी ने अध्यक्षता पद की मर्यादा के अनुसार अंत में अपनी तीन ग़ज़ल पढ़ी, जिसमें से एक का मिसरा रहा ....
धूप तन मन को सुहाए तो ग़ज़ल होती है
और शीत में शाल ओढ़ाए तो ग़ज़ल होती है।
सलीकेदार श्रोताओं में रही श्रीमती अंजु (डॉ॰ रामकांत जी की पत्नि, और श्री खन्ना मुज़फ्फ़रपुरी की पत्नि श्रीमति कृष्णा जी-। डॉ॰ राजेंद्र यादव जी का क्या परिचय दूँ, एक स्वस्थ, सही, मौन श्रोता बनकर हर एक पहलू से सनमानित हस्ताक्षरों की तस्वीरें खींचते रहे। उन्हें कैमेरा में क़ैद करते रहे, करते रहे....जो मौके को एक यादगार दे गए। अंत में श्री नरहरी श्री शयम सहा जी का, महरिश जी का और सभी उपस्थित कविगन का आभार प्रकट किया और सुरीली श्याम चाय नाश्ते के साथ संपन्न हुई।
7 टिप्पणियाँ
साहित्यिक गतिविधियाँ हिन्दी को जीवित रख रही हैं।
जवाब देंहटाएंअनिल जी की यह बात तो सच् है...साहित्य शिल्पी को ध्न्यवाद समाचार के लिए..
जवाब देंहटाएंbahuta dino bada sahitya shilpi prarambh hua dhanyavad.Prabhudayal
जवाब देंहटाएंSahitya Shilpi ko badhayi v shubhkamanyein Is samast prayasjanak karya ke liye
जवाब देंहटाएंसाहित्यिक गतिविधिया देख मन गद गद हो जाता है..
जवाब देंहटाएंबेहतर आयोजन के बेहतर प्रतिवेदन के लिये साहित्य शिल्पी को धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजयनारायण बस्तरिया
आज जब बाजारवाद अपनी पूरी ताकत से साहित्य को कला को हाशिये पर धकेलने में लगा हुआ है वहीं आप सरीखे अनेक साहित्यप्रेमी साहित्य के परचम को लहरा-फ़हरा रहे हैं यह समाज व साहित्य के लिये बहुत मह्त्वपूर्ण काम है और साहित्यिक गतिविधियों को आगे लाने का कार्य तो और भी श्लाघनीय अनुकरणीय कार्य है इस हेतु बधाई।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.