
इनमें बचपन है, विश्व बंधुत्व है, प्रेम की पराकाष्ठा है और प्रीत निभाने के तरीके जानने की मासूम जिज्ञासा है। शुरुआती कविताएं ऐसे ही मासूम सवालों से जूझती हैं और धीरे धीरे रचनाकार को परिपक्व बनाती हैं।
इन ऊँची इमारतों में
एक सपना कहीं खो गया,
बचपन का वो इन्द्रधनुष
ना जाने कहां खो गया ...
देखकर जिस सूरज को
पुलकित होता था मेरा मन ...
वो सामने आकर,
खड़ा हो गया है.
क्रांकीट की सड़कों पर चल
आज इतना थक गया हूँ ..
कि मन पगडण्डी का आनंद भूल गया है.
बस और ट्रेन में लटकते - लटकते,
बैलगाड़ी की यादों में मन कब का सो गया है.
शाम होते है घरों में ..
अनगिनत गोले जल उठते है
माटी का दीपक लगाना
ये जहान सारा भूल गया है .
ग्रह नक्षत्र को देखकर,
इन्सान खगोल शास्त्र पढ़ता है
चाँद को उसने आजकल
मामा कहना छोड़ दिया है .
भूलकर अपने संस्कारों को
गैरों का दामन थान लिया है .
मेरी आर्य भूमि को
पश्चिमी रंग चढ़ गया है .
एक सपना कहीं खो गया,
बचपन का वो इन्द्रधनुष
ना जाने कहां खो गया ...
देखकर जिस सूरज को
पुलकित होता था मेरा मन ...
वो सामने आकर,
खड़ा हो गया है.
क्रांकीट की सड़कों पर चल
आज इतना थक गया हूँ ..
कि मन पगडण्डी का आनंद भूल गया है.
बस और ट्रेन में लटकते - लटकते,
बैलगाड़ी की यादों में मन कब का सो गया है.
शाम होते है घरों में ..
अनगिनत गोले जल उठते है
माटी का दीपक लगाना
ये जहान सारा भूल गया है .
ग्रह नक्षत्र को देखकर,
इन्सान खगोल शास्त्र पढ़ता है
चाँद को उसने आजकल
मामा कहना छोड़ दिया है .
भूलकर अपने संस्कारों को
गैरों का दामन थान लिया है .
मेरी आर्य भूमि को
पश्चिमी रंग चढ़ गया है .
2.. उम्मीद है ये फासले कम होंगे
उम्मीमद है ये फासले कम होंगे
हर चौराहे पर एक दिन जश्न होंगे
हर दिल की नफरत को
मुहब्बत में तब्दील करेंगे..
तेरे दर कभी तो हमारे लिए खुलेंगे
उम्मीद है ये फासले कम होंगे
जंग से तो हम
हर सरहद जीत लेंगे
पर दिलों को कभी छू ना पायेंगे
तुम्हारी जिद में ऐ दोस्त
ना जाने कितने परिवार बिखर जायेंगे .
उमीद है ये फासले कम होंगे
हम कहते हैं आवाम में
चैनों अमन की हवा बहे ...
भूलकर सारी रंजिशों को
नया आगाज़ हम करेंगे.
उम्मीद है ये फासले कम होंगे .
ख्वाइश है दिल में...
शांति और अहिंसा का ..
एक एक चिराग हर घर में जले
तेरे घर में राम तो मेरे घर रहीम होंगे
उम्मीद है ये फासले कम होंगे .
3...... कि वो मुझे मिल जाये
मै किस नदी, तालाब या कूंए में ..
सिक्का डालूं कि ..
उसके प्रेम के शीतल जल से
आत्मा का क्लेश धुल जाये ..
किस पीपल के नीचे...
आटे का दीपक लगाऊं कि..
उसके आने से मेरे जीवन का ..
तमस मिट जाये .
मैं किस मंदिर -मस्जिद की..
ड्योढ़ी पर शीश नवाऊं ..
कि वो मुझे मिल जाये ..
मै कौन सा व्रत रखूं?
कि वो मेरे संग हो और ..
मेरा रूप रंग निखर आये ...
और किस मंत्र का जाप करूं ?
या किस ग्रन्थ का पथ करूं ..?
कि वो मेरे जीवन को ...
खुशियों से भर दे ...
आखिर मैं किस शिव लिंग
का दुग्ध : अभिषेक करूं?
कि मुझे मेरे आशुतोष मिल जायें ...
4. .... ये प्रेम कैसा है ?
प्रेम रेत सा है,
जो मेरे हाथों से ..
धीरे धीरे फिसलता रहा .
प्रेम समय है ..
जिसे मुठठी में बांधना चाहा
फिर भी वो उन्मुक्त रहा ...
प्रेम समुद्र सा है..
जिसमें डूबकर भी
सब कुछ शुष्क रहा .
प्रेम पवन सी महक है.
पर इस महक से ..
कइयों का जीवन अछूता रहा .
अंततः मै स्वयं से प्रश्न करती हूँ
कि ये प्रेम कैसा है ?
"प्रेम" जिसकी लोग श्रद्धा सुमन से पूजा करते है .
फिर भी उनकी दुनिया मे..
वियोग, अंतहीन सूनापन ....
और कालरात्रि ही आती है .
33 टिप्पणियाँ
कविताओं में ताजगी है। आओ धूप स्तंभ के लिये बिलकुल उपयुक्त।
जवाब देंहटाएंWell done. Keep it up.
जवाब देंहटाएंWell done...Keep it up....
जवाब देंहटाएंआदरणीय सूरजप्रकाश जी, सर्वप्रथम बधाई स्वीकारें साहित्यशिल्पी के 'वेबसंस्करण' की विश्वपटल पर स्थापना हेतु ! आपका हृदय से अभिनन्दन ! प्राजक्ता की "आओ धूप" के चारों कवितायें बहुत अच्छी हैं, बिना किसी शब्दाडंबर के अपनी बात कह दी है: " किस पीपल के नीचे/ आटे का दीपक लगाऊँ कि/ उसके आने से मेरे जीवन का/ तमस मिट जाए "
जवाब देंहटाएंकवयित्री को बधाई। आओ धूप बहुत सार्थक स्तम्भ बनेगा। नये रचनाकार नवीनता के कर आते हैं हिन्दी जगत में।
जवाब देंहटाएंSAHITYA SHILPI KAA NAYAA RANG - ROOP DEKH KAR MAIN
जवाब देंहटाएंAANANDIT HO GAYAA HUN . KHOOB ! BAHUT KHOOB !!
अच्छी कविता की ओर यात्रा
जवाब देंहटाएंaap sabhi ko dhanywad .Prajakta
जवाब देंहटाएंआओ धूप बहुत दिनो बाद देख और पढ कर खुशी हुई.. यह नियमित चलना चाहिए..
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर अभिव्यक्ति………
जवाब देंहटाएं'आओ धूप'स्तंभ के लियें बधाई..
जवाब देंहटाएंएक अच्छा प्रयास...
कवितायें अच्छी लगीं...
बधाई कवियित्री को..
प्राजक्ता, सर्वप्रथम हृदय में आई बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंआपकी चारों कवितायें बहुत अच्छी हैं !
अभिव्यक्ति बहुत अच्छी लगी !
ये एक अति सुन्दर प्रयास है !
1. "मन पगडण्डी का आनंद भूल गया है"
2. "बैलगाड़ी की यादों में मन कब का सो गया है"
3. "हर दिल की नफरत को
मुहब्बत में तब्दील करेंगे"
4. "उसके आने से मेरे जीवन का ..
तमस मिट जाये"
5. "मै कौन सा व्रत रखूं?
कि वो मेरे संग हो और ..
मेरा रूप रंग निखर आये"
6. "रेम समुद्र सा है..
जिसमें डूबकर भी
सब कुछ शुष्क रहा"
अति सुन्दर अभिव्यक्ति है !
प्राजक्ता, सर्वप्रथम हृदय में आई बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंआपकी चारों कवितायें बहुत अच्छी हैं !
अभिव्यक्ति बहुत अच्छी लगी !
ये एक अति सुन्दर प्रयास है !
1. "मन पगडण्डी का आनंद भूल गया है"
2. "बैलगाड़ी की यादों में मन कब का सो गया है"
3. "हर दिल की नफरत को
मुहब्बत में तब्दील करेंगे"
4. "उसके आने से मेरे जीवन का ..
तमस मिट जाये"
5. "मै कौन सा व्रत रखूं?
कि वो मेरे संग हो और ..
मेरा रूप रंग निखर आये"
6. "रेम समुद्र सा है..
जिसमें डूबकर भी
सब कुछ शुष्क रहा"
अति सुन्दर अभिव्यक्ति है !
nice poems
जवाब देंहटाएंह्रदय की गहराइयों से निकले शब्दों को बहुत ही सुन्दर ढंग से कविता रुपी माला में पिरोया गया है. इन रचनाओं के लिए साधुवाद....भविष्य में भी इसी प्रकार अपनी रचनाओं को हम तक पहुंचती रहो यही कामना है. बहुत बहत बधाइयाँ....शुभकामनाएँ प्राजक्ता
जवाब देंहटाएं'आओ धूप'स्तंभ के लियें सूरजप्रकाश जी को भी हार्दिक बधाई..
--- निशांत मिश्रा
kavitaye sundar aur satik hai...jivan me esi hi aage badhte raho.suraj prakash ji ko sampadan ke liye hardik badhai.Mrs prerana paradkar
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई। चार रंगों की बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएं"बचपन का वो इन्द्रधनुष
ना जाने कहां खो गया ...
क्रांकीट की सड़कों पर चल
आज इतना थक गया हूँ ..
कि मन पगडण्डी का आनंद भूल गया है.
चाँद को उसने आजकल
मामा कहना छोड़ दिया है।"
"उम्मीद है ये फासले कम होंगे
हर चौराहे पर एक दिन जश्न होंगे।"
-नीलम अंशु।
Kya kahoon ? aapne to mujhse milne ke pahle hi mere naam ka zikra kar dala. bahut khoob.achchha prayaas hai.jaari rakhen.
जवाब देंहटाएंAll poems are very nice...especially Bachapan ka vo Endradhanushya
जवाब देंहटाएंBahot Khup.....TC
बहुत ही खुबसुरती से आपने काव्य रचा है.
जवाब देंहटाएंदिल को छु गया.
अभिनंदन और शुभकामनाए
behad khubsurat
जवाब देंहटाएंकथ्य है,,,कथन बहुत सपाट है,,,अभी प्राजक्ता की यात्रा शुरू हुई है,,, हमें उम्मीद है कविता की ओर उनकी यह यात्रा क्रमश: सुगठित और बेहतर होगी....शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंयहां से शुरू होता प्राजक्ता का यह काव्य सफर उम्मीद है और भी धारदार होगा...
जवाब देंहटाएं00 देवदीप
वाकई में आपकी लेखनी में जादू है ।
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंWah Prajakta, khup chhan, havtuza gun ekde konala mahit navhata.Ashich Chan chan kavita karat ja.Hardik Shubhechhya.
जवाब देंहटाएंThanks kaka
जवाब देंहटाएंexcellent work.... bachpan ka wo indradanush touched me
जवाब देंहटाएंअति सुंदर । बचपन एंव पुरानी यादों को ताजा रखने वाली उत्तम प्रस्तुति । अभिनंदन
जवाब देंहटाएंVery nice poem. 👌👍
जवाब देंहटाएंखूबसूरत कविताएँ
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखती हो
जवाब देंहटाएंBahut sundar ati sundar yah kram jari rhna chahiye
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.