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छाँव भी लगती नहीं अब छाँव [कविता] - लाला जगदलपुरी


हट गये पगडंडियों से पाँव
लो, सड़क पर आ गया हर गाँव।

चेतना को गति मिली स्वच्छन्द,
हादसे, देने लगे आनंद
खिल रहे सौन्दर्य बोधी फूल
किंतु वे ढोते नहीं मकरंद।

एकजुटता के प्रदर्शन में
प्रतिष्ठित हर ओर शकुनी-दाँव।

हट गये पगडंडियों से पाँव
लो, सड़क पर आ गया हर गाँव।


आधुनिकता के भुजंग तमाम
बमीठों में कर रहे आराम
शोहदों से लग रहे व्यवहार
रुष्ट प्रकृति दे रही अंजाम।

दुखद कुछ ऐसा रहा बदलाव
छाँव भी लगती नहीं अब छाँव।

हट गये पगडंडियों से पाँव
लो, सड़क पर आ गया हर गाँव।

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6 टिप्पणियाँ

  1. nice poem. Thanks Sahitya Shilpi is back.

    -Alok Kataria

    जवाब देंहटाएं
  2. हट गये पगडंडियों से पाँव
    लो, सड़क पर आ गया हर गाँव।

    बेहतरीन रचना।

    जवाब देंहटाएं
  3. लाला जगदलपुरी की रचनाओं में गहराई होती है।

    दुखद कुछ ऐसा रहा बदलाव
    छाँव भी लगती नहीं अब छाँव।
    हट गये पगडंडियों से पाँव
    लो, सड़क पर आ गया हर गाँव।

    जवाब देंहटाएं
  4. लाला जगदलपुरी की कविताओ की बात ही कुछ और होती है...

    जवाब देंहटाएं
  5. लाला जगदलपुरी जी को शत शत नमन जिनके बदौलत हमे इतनी अच्छी साहित्य सामग्री मिल पाती है...

    जवाब देंहटाएं
  6. बहौत सुंदर एवं सार्थक अभिव्यक्ति....

    जवाब देंहटाएं

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