आजकल सरस्वती अपने पुत्रों के लिये बहुत परेशान हैं| कुछ साल पहले तक तो उसके पुत्र ठीक थे, अपने हुनर, अपनी बुद्धिमत्ता,और मस्तिष्कीय चातुर्य से सारे संसार पर काबिज थे, दुनिया उनका लोहा मानती थी, समाज में उनकी इज्जत थी, आदर था, किन्तु इधर कुछ वर्षों से लक्ष्मी पुत्रों के आतंक से बेचारे परेशान हैं| और अब तो लक्ष्मी के ये उद्दंड पुत्र उसकी ही वंदना अर्चना में ही टांग अड़ाने लगे हैं| अपने पुत्रों की दुर्दशा पर चुपचाप आँसू बहा लेती थी,पर ऊपर सीधा हमला होते देखकर वह बेकाबू हो गईं और वह अपने पिता ब्रह्मा के पास क्रोधाग्नि में जलती हुईं जा धमकीं|
"पिताजी आप अपनी लक्ष्मी भाभी को क्यों नहीं समझाते| उनके पुत्र अब तो सारी मर्यादायें तोड़कर मेरे पुत्रों को चुन चुनकर प्रताड़ित कर रहे हैं और वे दुष्ट राक्षसों से भी बढ़कर मेरे पुत्रों का सर्वनाश कर हैं| आप यदि कुछ नहीं कर सकते तो मैं स्वयं जाकर लक्ष्मी आँटी से बात करूंगी|"
"नहीं नहीं बेटी ऐसा मत करना,विष्णु भैया नाराज हो जायेंगे|" ब्रह्माजी ने दुखी होकर उत्तर दिया|
"नाराज हो जायंगे तो हमारा क्या बिगाड़ लेंगे| अब तो पानी सिर से ऊपर चला गया है| लक्ष्मी पुत्रों की चारों ओर जय जयकर हो रही है| वे दुराचारी दुष्ट,पापी और पाखंडी हो गये हैं| एक एक करके वे मेरे सभी पुत्रों को निशाना बना रहे हैं| यदि यही हाल रहा तो मेरे सारे पुत्रों का सर्वनाश हो जायेगा| मैं तो इस बात पर विष्णु अंकल से भी टक्कर ले लूंगी| आखिर आप भी तो ब्रह्मांड के निर्माता हैं और बहुत पावर फुल हैं,स्वर्ग के सबसे बुजुर्ग भगवान| कुछ तो करिये|"
बूढ़े ब्रह्मा निरीह होकर कहने लगे"बेटी मैं विष्णु से दुश्मनी मोल नहीं ले सकता| मौके बेमौके वही तो हमारी मदद करते हैं| वह बड़े फितरती और तिकड़मी हैं| तुम्हें याद नहीं यदि विष्णु भैया ऐन वक्त पर मदद नहीं करते तो भस्मासुर शंकर भाई को कब का भस्म कर चुका होता|
"तो फिर आप शंकर अंकल से कहें की वह अपनी लक्ष्मी भाभी को समझायें,कम से कम मेरे पुत्रों की किसी प्रकार रक्षा तो हो|"
"बेटी शंकर तो पहले से ही बिगड़ा हुआ है| पहले तो वह भाँग धतूरा खाये पड़ा रहता था परंतु अब तो अपनी प्रसिद्धि की चाह ने उसे खुदगर्ज बना दिया है| धरतीवासियों के गाँव में उसने दारू की दुकानें खुलवा दीं हैं| अपने लोकप्रिय होने के लिये उसने'जय जय शिव शंकर काँटा लगे न कंकर और 'दम मारो दम'जैसे गानों को घर पहुँचा दिया है| फिर वह लक्ष्मी भाभी की चापलूसी में लगा रहता है| लक्ष्मी पुत्रों को उसने अभय दे रखा है तभी तो लक्ष्मी पुत्र "खायेंगे पियेंगे ऐश करेंगे आती है खंडाला" गाकर नाच रहे हैं झूम रहे हैं|"
"नहीं नहीं" वह चीख पड़ीं,आखों से टप टप आँसू गिरने लगे,वह फफककर रो पड़ीं| ब्रह्मा की बेटी होकर भी तीनों लोकों में उसके पुत्रों की रक्षा करनेवाला कोई नहीं| वह लक्ष्मी आँटी को कोसने लगी, अपने पुत्रों को सिर पर चढ़ा रखा है, सारे संसार पर राज कर रहे हैं उसके गधे और नालायक पुत्र|
सरस्वती का सिर चकराने लगा| वह किमकर्तव्य विमूढ हो गई| पिता ब्रह्मा कितने निरीह और असहाय हैं| बेटी का दुख पिता से छिपा नहीं है किंतु वह बेचारे क्या करें| लक्ष्मी पुत्र बहुत बलवान हो गये हैं| उनके पास तन बल,जन बल,और धन बल सब कुछ है| वे चोर हैं,वे माफिया हैं,वे डाकू हैं, वे आतंकवादी हैं,वे चमचे हैं, वे दलाल हैं, वे नेता हैं, वे मंत्री हैं, वे हवाला हैं, वे घुटाला हैं, वे सत्ता हैं, वे तुरुप के पत्ता हैं| इस असार संसार में वे ही सब कुछ हैं| ब्रह्माजी की आँखों में आंसू आ गये| वह उठे और अपने पुस्तकालय से एक किताब उठा लाये|
"बेटी यह किताब पढ़ लो जो कुछ साल पहले रहीम साहिब ने धरती से लाकर दी थी, तुम्हें सांत्वना मिलेगी|"
सरस्वती ने रोते रोते किताब के पन्ने पल्टे|किताब के पन्नों में लिखा था "रहिमन चुप हो बैठिये देख दिनन को फेर.....|" तब से लक्ष्मी अच्छे दिन आने का इंतजार कर रहीं हैं|"
3 टिप्पणियाँ
सरस्वती पुत्रों की अब पूंछ परख कहां है ,इस समय तो लक्ष्मी पुत्रों का ही बोलबाला है|अच्छा व्यंग्य|
जवाब देंहटाएंगोवर्धन यादव
अच्छा व्यंग्य मजेदार
जवाब देंहटाएंपी. एन. श्रीवास्तव सिविल लाइंस सागर म.प्र.
अच्छा व्यंग्य..बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.