चुनावों के मौसम जो आने लगे हैं’
सुदामा के घर ’कृश्न’ जाने लगे हैं
जिन्हें पाँच वर्षों से देखा नहीं है
वही ख़ुद को ख़ादिम बताने लगे हैं
हुई जिनकी ’टोपी’ है मैली-कुचैली
मुझे सच की मानी सिखाने लगे हैं
ख़ुदा जाने होता यकीं क्यों नहीं है !
नये ख़्वाब फ़िर से दिखाने लगे हैं
मेरी झोपड़ी पे तरस खाने वालों
बनाने में इसको ज़माने लगे हैं
हमें उनकी नीयत पे शक तो नहीं है
वो नज़रें मगर क्यों चुराने लगे हैं?
चलो मान लेते हैं बातें तुम्हारी
निवाले मिरे कौन खाने लगे हैं?
कहाँ जाके मिलते हम ’आनन’किसी से
यहाँ सब मुखौटे चढ़ाने लगे हैं
[नोट कृश्न = कृष्ण]-
3 टिप्पणियाँ
अच्छी गज़ल..बधाई
जवाब देंहटाएंचुनावों के मौसम जो आने लगे हैं’
जवाब देंहटाएंसुदामा के घर ’कृश्न’ जाने लगे हैं
chunav aa gaye hain. sahi hai gazal.
-Alok Kataria
नेता नेता हैं क्यो की वो और कुछ हो नहीं सकता
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.