फिर से उड़ने लगें है झंडे फिर से नारे बाजी
फिर से होने लगी मिल कर वोट की सौदे बाजी
कहीं बिकेगी बस बोतल में कहीं नोट की गद्दी
इस से ही बदलेगी निश्चित कुछ लोगों की बाजी ||
मंहगाई और भ्रष्ट आचरण जैसे मुद्दे छोड़े
जाये दश भाड़ में सब ने इस से नाते तोड़े
हल हो जाये अपना मतलब ये ही एक एजेंडा
क्या सारे सुख अमर शहीदों ने इस हेतु छोड़े
बन जाएगी पुन: वही सरकार दुबारा वैसी
जैसे जनता लिती अभी तक और लुटेगी वैसी
कौन कहे अब एक दूसरे से सारे वैसे हैं
लूटना तो जनता को ही है सभी एक जैसे हैं
क्यों लिती जनता इस का उत्तर आसन नही है
कैसे मिटे गरीबी ये उत्तर आसन नही है
जब तक होगी सौदे बाजी वोट बिकेगा यूं ही
तब तक इस का हल होना इतना आसन नही है ||
2 टिप्पणियाँ
अच्छे मुक्तक...बधाई
जवाब देंहटाएंgood sir keep it up
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.