आलोचना, निंदा से भर्त्सना तक
गालियों, थप्पड़ों से जूतों तक
सब आपके ही अधिकार हैं श्रीमान
क्योंकि आप जनतांत्रिक बहुमत हैं
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो निश्चित
पाई जाएगी, कुछ कोटरों में
जब खोद निकालेगा कोई पुरावेत्ता
आपके बहुमत के जनतांत्रिक साम्राज्य के अवशेष
पाए जायेंगे आपके मदांध जुलूस
रोंदते हुए बोल्शेविकों की तरह मेंशेविकों को
अपने ऐतिहासिक दायित्व की एवज में.....
'विवादित' के कुछ लेबल मिलेंगे
जहाँ आपने जिन्दा दफ़न कर रखा होगा
अपनी असुविधाओ और सड़ांध मारती शंकाओ को.
आपसे विमुख कुछ सत्य पड़े मिलेंगे
लिए कनपटी के आर पार
आपकी गोलियों के निशान.
पाए जायेंगे कुछ जंग लगे आपके रहमोकरम के कटोरे
भरे होंगे जिनमे आपके प्रिय तथ्य
नजदीक में ही पड़ी होगी एक सुन्दर
ममीकृत सजाई हुई लाश
जिसके कानो में भरा होगा आपके मीडिया मैनेजमेंट का सीसा
गले में भरी होगी आपकी पकी हुई प्रशासनिक मिटटी
उसकी जुबान पर चढ़ा होगा वो मुल्लमा
जो आपके जूतों पर है
यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता.....
अल्पमत शायद गाते गाते मरा था
3 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंNice.....
जवाब देंहटाएंSabdo ka chayan utna achcha nahi hai.....
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.